Book Title: Agam 18 Jambudwippragnapti Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar

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Page 24
________________ आगम सूत्र १८, उपांगसूत्र-७, 'जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति' वक्षस्कार/सूत्र भोग्य हो गये हैं । वे बिलों से निकल आयेंगे । हर्षित एवं प्रसन्न होते हुए एक दूसरे को पुकार कर कहेंगे-देवानुप्रियों ! भरतक्षेत्र में वृक्ष आदि सब उग आये हैं । छाल, पत्र आदि सुखोपभोग्य हैं । इसलिए आज से हम में से जो कोई अशुभ, मांसमूलक आहार करेगा, उसकी छाया तक वर्जनीय होगी- । ऐसा निश्चय कर वे समीचीन व्यवस्था कायम करेंगे । भरतक्षेत्र में सुखपूर्वक, सोल्लास रहेंगे। सूत्र - ५३ उत्सर्पिणी काल के दुःषमा नामक द्वितीय आरक में भरतक्षेत्र का आकार-स्वरूप कैसा होगा ? गौतम ! उनका भूमिभाग बहुत समतल तथा रमणीय होगा । उस समय मनुष्यों का आकार-प्रकार कैसा होगा ? गौतम ! उस मनुष्यों के छह प्रकार के संहनन एवं संस्थान होंगे । उनकी ऊंचाई सात हाथ की होगी । उनका जघन्य अन्तमुहूर्त्त का तथा उत्कृष्ट कुछ अधिक सौ वर्ष का आयुष्य होगा | आयुष्य को भोगकर उन में से कईं नरक-गतिमें, यावत् कईं देव-गति में जायेंगे, किन्तु सिद्ध नहीं होंगे। गौतम ! उस आरक के २१००० वर्ष व्यतीत हो जाने पर उत्सर्पिणी काल का दुःषम-सुषमा नामक तृतीय आरक आरम्भ होगा । उसमें अनन्त वर्णपर्याय आदि क्रमश: परिवर्द्धित होते जायेंगे । उस काल में भरतक्षेत्र का आकार-स्वरूप कैसा होगा ? गौतम ! उनका भूमिभाग बड़ा समतल एवं रमणीय होगा । उन मनुष्यों का आकारस्वरूप कैसा होगा? गौतम ! उन मनुष्यों के छह प्रकार के संहनन तथा संस्थान होंगे । शरीर की ऊंचाई अनेक धनुष-परिमाण होगी । जघन्य अन्तमुहर्त तथा उत्कृष्ट एक पूर्व कोटि तक आयुष्य होगा । कईं नरक-गति में जाएंगे यावत् कईं समस्त दुःखों का अन्त करेंगे । उस काल में तीन वंश उत्पन्न होंगे-१. तीर्थंकर-वंश, २. चक्रवर्ती-वंश तथा ३. दशारवंश-बलदेव-वासुदेव वंश । उस काल में तेईस तीर्थंकर, ग्यारह चक्रवर्ती तथा नौ वासुदेव उत्पन्न होंगे। गौतम ! उस आरक का ४२००० वर्ष कम एक सागरोपम कोड़ा-कोड़ी काल व्यतीत हो जाने पर उत्सर्पिणी-काल का सुषम-दु:षमा नामक आरक प्रारम्भ होगा । उसमें अनन्त वर्णपर्याय आदि अनन्तगुण परिवृद्धि क्रम से परिवर्द्धित होंगे । वह काल तीन भागों में विभक्त होगा-प्रथम तृतीय भाग, मध्यम तृतीय भाग तथा अन्तिम तृतीय भाग । उस काल के प्रथम त्रिभाग में भरतक्षेत्र का आकार-स्वरूप कैसा होगा ? गौतम ! उसका भूमिभाग बहत समतल तथा रमणीय होगा । अवसर्पिणी-काल के सुषम-दुःषमा आरक के अन्तिम तृतीयांश के समान में मनुष्य होंगे । केवल इतना अन्तर होगा, इसमें कुलकर नहीं होंगे, भगवान् ऋषभ नहीं होंगे । इस संदर्भ में अन्य प्राचार्यों का कथन है-उस काल के प्रथम त्रिभाग में पन्द्रह कुलकर होंगे-सुमति यावत् ऋषभ । शेष उसी प्रकार है । दण्ड-नीतियाँ विपरीत क्रम से होंगी । उस काल के प्रथम विभाग में राज-धर्म यावत् चारित्र-धर्म विच्छिन्न हो जायेगा । मध्यम तथा अन्तिम विभाग की वक्तव्यता अवसर्पिणी के प्रथम-मध्यम त्रिभाग की ज्यों समझना । सुषमा और सुषम-सुषमा काल भी उसी जैसे हैं । छह प्रकार के मनुष्यों आदि का वर्णन उसी के सदृश है। वक्षस्कार-२-का मुनि दीपरत्नसागरकृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण मुनि दीपरत्नसागर कृत् ' (जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद Page 24

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