Book Title: Agam 18 Jambudwippragnapti Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar
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आगम सूत्र १८, उपांगसूत्र-७, 'जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति'
वक्षस्कार/सूत्र
कच्छप रहेंगे । उस जल में सजातीय अप्काय के जीव नहीं होंगे । वे मनुष्य सूर्योदय तथा सूर्यास्त के समय अपने बिलों से तेजी से दौड़ कर निकलेंगे । मछलियों और कछुओं को पकड़ेंगे, जमीन पर लायेंगे । रात में शीत द्वारा तथा दिन में आतप द्वारा उनको रसरहित बनायेंगे । वे अपनी जठराग्नि के अनुरूप उन्हें आहारयोग्य बना लेंगे। इस आहार-वृत्ति द्वारा वे २१००० वर्ष पर्यन्त अपना निर्वाह करेंगे । वे मनुष्य, जो निःशील, आचाररहित, निवृत्त, निर्मर्याद, प्रत्याख्यान, पौषध व उपवासरहित होंगे, प्रायः मांस-भोजी, मत्स्य-भोजी, यत्र-तत्र अवशिष्ट क्षुद्र धान्यादिक-भोजी, कुणिपभोजी आदि दुर्गन्धित पदार्थ-भोजी होंगे । अपना आयुष्य समाप्त होने पर मरकर वे प्रायः नरकगति और तिर्यंचगति में उत्पन्न होंगे । तत्कालवर्ती सिंह, बाघ, भेड़िए, चीत्ते, रीछ, तरक्ष, गेंडे, शरभ, शृगाल, बिलाव, कुत्ते, जंगली कुत्ते या सूअर, खरगोश, चीतल तथा चिल्ललक, जो प्रायः मांसाहारी, मत्स्याहारी, क्षुद्राहारी तथा कुणपाहारी होते हैं, मरकर प्रायः नरकगति और तिर्यंचगति में उत्पन्न होंगे। भगवन् ! ढंक, कंक, पीलक, मद् गुक, शिखी, जो प्रायः मांसाहारी हैं, मरकर प्रायः नरकगति और तिर्यंचगति में जायेंगे। सूत्र - ५०
गौतम ! अवसर्पिणी काल के छठे आरक के २१००० वर्ष व्यतीत हो जाने पर आनेवाले उत्सर्पिणी-काल का श्रावण मास, कृष्ण पक्ष प्रतिपदा के दिन बालव नामक करण में चन्द्रमा के साथ अभिजित् नक्षत्र का योग होने पर चतुर्दशविध काल के प्रथम समय में दुषम-दुषमा आरक प्रारम्भ होगा । उसमें अनन्त वर्णपर्याय आदि अनन्तगुण-क्रम से परिवर्द्धित हो जायेंगे । भगवन् ! उस काल में भरतक्षेत्र का आकार-स्वरूप कैसा होगा ? गौतम ! उस समय हाहाकारमय, चीत्कारमय स्थिति होगी, जैसा अवसर्पिणी-काल के छठे आरक के सन्दर्भ में वर्णन किया गया है । उत्सर्पिणी के प्रथम आरक दुःषम-दुःषमा के इक्कीस हजार वर्ष व्यतीत हो जाने पर उसका दुःषमा नामक द्वितीय आरक प्रारम्भ होगा । उसमें अनन्त वर्णपर्याय आदि अनन्तगुण-परिवृद्धि-क्रम से परिवर्द्धित होने जायेंगे। सूत्र-५१
उस उत्सर्पिणी-काल के दुःषमा नामक द्वितीय आरक के प्रथम समय में भरतक्षेत्र की अशुभ अनुभावमय रूक्षता, दाहकता आदि का अपने प्रशान्त जल द्वारा शमन करनेवाला पुष्कर-संवर्तक नामक महामेघ प्रकट होगा। वह महामेघ लम्बाई, चौड़ाई तथा विस्तार में भरतक्षेत्र प्रमाण होगा । वह पुष्कर-संवर्तक महामेघ शीघ्र ही गर्जन कर शीघ्र ही विद्युत से युक्त होगा, विद्युत-युक्त होकर शीघ्र ही वह युग के अवयव-विशेष, मूसल और मुष्टि-परिमित धाराओं से सात दिन-रात तक सर्वत्र एक जैसी वर्षा करेगा । इस प्रकार वह भरतक्षेत्र के अंगारमय, मुर्मुरमय, क्षारमय, तप्त-कटाह सदृश, सब ओर से परितप्त तथा दहकते भूमिभाग को शीतल करेगा । उसके बाद क्षीरमेघ नामक महामेघ प्रकट होगा । वह लम्बाई, चौड़ाई तथा विस्तार में भरतक्षेत्र जितना होगा । वह विशाल बादल शीघ्र ही गर्जन करेगा, शीघ्र ही युग, मूसल और मुष्टि परिमित एक सदृश सात दिन-रात तक वर्षा करेगा । यों वह भरत क्षेत्र की भूमि में शुभ वर्ण, शुभ गन्ध, शुभ रस तथा शुभ स्पर्श उत्पन्न करेगा, जो पूर्वकाल में अशुभ हो चूके थे । फिर घृतमेघ नामक महामेघ प्रकट होगा । वह लम्बाई, चौड़ाई और विस्तार में भरतक्षेत्र जितना होगा । वह भरत क्षेत्र की भूमि में स्निग्धता उत्पन्न करेगा।
फिर अमृतमेघ प्रकट होगा । वह भरतक्षेत्र में वृक्ष, गुच्छ, गुल्म, लता, वेल, तृण, पर्वग, हरित, औषधि, पत्ते तथा कोंपल आदि बादर जीवों को उत्पन्न करेगा । फिर रसमेघ प्रकट होगा । बहुत से वृक्ष, गुच्छ, गुल्म, लता, वेल, तृण, पर्वग, हरियाली, औषधि, पत्ते तथा कोंपल आदि में तिक्त, कटुक, कषाय, अम्ल तथा मधुर पाँच प्रकार के रस उत्पन्न करेगा । तब भरतक्षेत्र में वृक्ष, यावत् कोंपल आदि उगेंगे । उनकी त्वचा, पत्र, प्रवाल, पल्लव, अंकुर, पुष्प, फल, ये सब परिपुष्ट होंगे, समुदित होंगे, सुखोपभोग्य होंगे। सूत्र-५२
तब वे बिलवासी मनुष्य देखेंगे-भरतक्षेत्र में वृक्ष, गुच्छ, यावत् औषधि आये हैं । छाल, पत्र इत्यादि सुखोप
मुनि दीपरत्नसागर कृत् ' (जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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