Book Title: Agam 18 Jambudwippragnapti Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar
View full book text
________________
आगम सूत्र १८, उपांगसूत्र-७, 'जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति'
वक्षस्कार/सूत्र
वक्षस्कार-२- 'काळ' सूत्र - २२
भगवन् ! जम्बूद्वीप के अन्तर्गत भरतक्षेत्र में कितने प्रकार का काल है? गौतम ! दो प्रकार का, अवसर्पिणी तथा उत्सर्पिणी काल । अवसर्पिणी काल कितने प्रकार का है ? गौतम ! छह प्रकार का, सुषम-सुषमाकाल, सुषमाकाल, सुषम-दुःषमाकाल, दुःषम-सुषमाकाल, दुःषमाकाल, दुःषम-दुःषमाकाल | उत्सर्पिणी काल कितने प्रकार का है ? गौतम ! छह प्रकार का, दुःषम-दुःषमाकाल यावत् सुषम-सुषमाकाल |
भगवन् ! एक मुहूर्त में कितने उच्छ्वास-निःश्वास हैं ? गौतम ! असंख्यात समयों के समुदाय रूप सम्मिलित काल को आवलिका कहा गया है | संख्यात आवलिकाओं का एक उच्छवास तथा संख्यात आवलिकाओं का एक निःश्वास होता है। सूत्र-२३
हृष्ट-पुष्ट, अग्लान, नीरोग मनुष्य का एक उच्छ्वास-निःश्वास प्राण कहा जाता है। सूत्र-२४
सात प्राणों का एक स्तोक, सात स्तोकों का एक लव, ७७ लवों का एक मुहूर्त होता है। सूत्र-२५
उच्छ्वास-निःश्वास का एक मुहूर्त होता है। सूत्र-२६
इस मुहूर्त्तप्रमाण से तीस मुहूर्तों का एक अहोरात्र, पन्द्रह अहोरात्र का एक पक्ष, दो पक्षों का एक मास, दो मासों की एक ऋतु, तीन ऋतुओं का एक अयन, दो अयनों का एक संवत्सर-वर्ष, पाँच वर्षों का एक युग, बीस युगों का एक वर्ष-शतक, दश वर्षशतकों का एक वर्ष-सहस्र, सौ वर्षसहस्रों का एक लाख वर्ष, चौरासी लाख वर्षों का एक पूर्वांग, चौरासी लाख पूर्वांगों का एक पूर्व होता है । ८४ लाख पूर्वो का एक त्रुटितांग, ८४ लाख त्रुटितांगों का एक त्रुटित, ८४ लाख त्रुटितों का एक अडडांग, ८४ लाख अडडांगों का एक अडड, ८४ लाख अडडों का एक अववांग, ८४ लाख अववांगों का एक अवव, ८४ लाख अववों का एक हुहकांग, ८४ लाख हहुकांगों का एक हहुक, ८४ लाख हुहुकों का एक उत्पलांग, ८४ लाख उत्पलांगों का एक उत्पल, ८४ लाख उत्पलों का एक पद्मांग, ८३ लाख पद्मांगों का एक पद्म, ८४ लाख पद्मों का एक नलिनांग, ८४ लाख नलिनांगों का एक नलिन, ८४ लाख नलिनों का एक अर्थनिपुरांग, ८४ लाख अर्थनिपुरांगों का एक अर्थनिपुर, ८४ लाख अर्थनिपुरों का एक अयुतांग, ८४ लाख अयुतांगों का एक अयुत, ८४ लाख अयुतों का एक नयुतांग, ८४ लाख नयुतांगों का एक नयुत, ८४ लाख नयुतों का एक प्रयुतांग, ८४ लाख प्रयुतांगों का एक प्रयुत, ८४ लाख प्रयुतों का एक चूलिकांग, ८४ लाख चूलिकांगों की एक चूलिका, ८४ लाख चूलिकाओं का एक शीर्षप्रहेलिकांग तथा ८४ लाख शीर्षप्रहेलिकांगों की एक शीर्षप्रहेलिका होती है । यहाँ तक ही गणित का विषय है । यहाँ से आगे औपमिक काल है। सूत्र-२७
भगवन् ! औपमिक काल का क्या स्वरूप है ? गौतम ! औपमिक काल दो प्रकार का है-पल्योपम तथा सागरोपम । पल्योपम का क्या स्वरूप है ? गौतम ! पल्योपम की प्ररूपणा करूँगा-परमाणु दो प्रकार का है-सूक्ष्म तथा व्यावहारिक परमाणु । अनन्त सूक्ष्म परमाणु-पुद्गलों के एक-भावापन्न समुदाय से व्यावहारिक परमाणु निष्पन्न होता है । उसे शस्त्र काट नहीं सकता। सूत्र-२८
___ कोई भी व्यक्ति उसे तेज शस्त्र द्वारा भी छिन्न-भिन्न नहीं कर सकता । ऐसा सर्वज्ञों ने कहा है । वह मुनि दीपरत्नसागर कृत् "(जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
Page 11