Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari

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Page 13
________________ सूत्र भावार्थ थेरे णामेत्र उदागच्छइ २त्ता अजसुहम्मे थेरे तिक्खुतो आयाहिणं पयाहिणं करेइ २ बंदइ, नमसइ २ वंदित्ता नमसित्ता अजसुहमस्स थेरस्स णच्चासणे णाइदूर, सुरसू समाणे णमंसमाणे अभिमुद्दे पंजलिउंड विणएणं पज्जुवासमाणे एवं वयासी-जइणं भंते ! समणेणं भगवया महावीरेणं आइगरेणं, तित्थगरेणं, सयंसंबुद्धेणं, लोगणाहेणं लोग, लोगपजायगरेणं, अभयदएणं, सरणदएणं, चवखुदएणं, मग्गदएणं. धम्मदणं, धम्मदेसणं, धम्मवरचाउरंतचक्कवहीणं, अप्पडिहयवरणाणदंसणधरेणं, • जिणेणं जावपुणं, बुद्धेणं बोहरणं, मुतेणं, मोयगेणं, तिष्णेणं तारएणं, सिव-मयल{ जोडकर आवर्त दक्षिणावत् करके वंदना नमस्कार कर आर्य सुधर्मा स्वामी से बहुत दूर व बहुत नहीं ऐसे रहकर शुश्रूषा करते हुवे सन्मुख पंजली सहित विनय से पर्युपासना करते हुवे ऐसा कहने लगे ( कि अहो भगवन् ! आदि के करनेवाले, तीर्थ के करनेवाले, स्वयं संबुद्ध, लोक के नाथ, लोक में मदीप समान, लोकमें उद्योत करनेवाले, अभय के देनेवाले, शरण देनेवाले, ज्ञानरूप चक्षुके दाता, मोक्षमार्ग देनेवाले, देने वाले, धर्म देशना करने वाले, धर्म में श्रेष्ट चातुरंत चक्रवर्ती, अप्रतिहत श्रेष्ठ ज्ञानदर्शन के धारक, रागद्वेष जीतने वाले, अन्य को उपदेश देकर रागद्वेष जीतनेवाले, तत्र जाननेवाले, अन्य को तस्त्र बतानेवाले, अष्टकर्मसे मुक्त होनेवाले, अन्यको मुक्त करनेवाले, आप संसारसे तीरे अन्य को तीरानेवाले, और उपद्रव रहित है निजीक ++ मांग ज्ञाताधर्मकथा का प्रथम श्रुत++ Jain Education International For Personal & Private Use Only उप्ति (मेघकुमार ) का प्रथम अध्ययन www.jainelibrary.org

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