Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari

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Page 12
________________ सूत्र भावार्थ 48 अमुवादक बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी Jain Education International या, कोणओ णिग्गओ, धम्म कहिओ, परिसा जामेवदिसि पाउब्भूए तामेव दिलि पडिगया ॥ ५ ॥ तेणं कालेणं तेणं समएणं; अजसुहम्मस्सअणगाररस जे अंतेवासी अज जंगूणामंअगगारे कासवगोते जात्र सतुसेहे जात्र अज सुहम्मस्स थेररस अदूरसामते उडुंजाणू अहोसिरे उझाणकोडोवगए संज्ञमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरई ॥ ६ ॥ तएण से अज्ज जंबुगामे जायसड्डे, जायसंसए, जायको उहले, संजायसड्डे, संजायसंसए, संजायकोउहले उत्पन्नसड्ढे, उत्पन्नसंसए, उत्पन्न को उहलेः समुप्पन्नसड्ढे, समुप्पन्नसंसए, समुप्पन्न कोउहले, उट्ठाए उट्ठित्ता जेणामेत्र अजसुहम्म धfकथा कही और परिषदा जहां से आई थी वहां पीछीगइ ॥ ५ ॥ उस काल उस समय में आर्य सुधर्मास्वामी अनगार के ज्येष्ट अंतेवासी आर्य जम्बू अनगार काश्यप गोत्र वाले यावत् सात हाथ की ऊंचाइवाले यावत् आर्य सुधर्मा स्वामी की पास ऊर्ध्वं जानु व अयो शिर सहिता ध्यान करते हुने संयम व तप से आत्मा को भाव हुने विचरते थे || ६ | उस समय में आर्य जम्बू स्वामी को ध्यान में वर्तते तत्र जानने की वांच्छा हुई, ज्ञान का विद्धार करने का संशय हुवा, और भगवान् कैसे उत्तर देते हैं वैसा जानने का कुतुहल उत्पन्न हुवा. विशेष श्रद्धा, विशेष संशय व विशेष कुतुहल हुवा. उत्पन्न हुई श्रद्धा संशय व कुछ विशेष समुह हुवा श्रद्धा संशय कुतूहल इस से अपने स्थान से उठ खड़े हुवे, खडे होकर वहां आर्य सुधर्मास्वामी स्थविर थे वहां आर्य काकर सुवर्मा स्वामी स्थानेर को तीन वक्त हस्तद्वय For Personal & Private Use Only manand * प्रकाशक- सजा बहदुर लाला सुखदेवमहायजी वालाप्रसादजी www.jainelibrary.org

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