Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari

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Page 11
________________ भावार्थ पष्टमांग ज्ञाताधर्मकथा का प्रथम श्रुतस्कन्ध घोर तवस्ती, घोर बभचरवासी, उच्छृढं सरोरे, संखित्तेविउलयलसे, चोहसे पुव्वी चउणाणोवग्गए, पंचहिं अणगार सएहिं सद्धिं संपरिबुडे पुवाणुपुर्दिव, चरमाणे, गामाणुगाम दुइजमाणे, मुहं सुहेणविहरमाणे, जेणेव चंपाणयरी जेणेव पुन्नभद्दे चेइए, तेणामेव उवागच्छइ, उवागच्छइत्ता: अहापडिरूवं उग्गहंउगिहई उगिहितों संजमेणं तवसा अप्पाणं भावमाणे विहरइ ॥ ४ ॥ तेणं चंपाएणयरीए परिसाणिः लोभ, इन्द्रिय,निद्रा,परिपेह इनकी जीतनेवाले,जीविताशा व मृत्युके भयसे मुक्त,अनशनादि सप, संयमादिगुन, पिंडविशुद्धादिक चरणसितरी,दशक्धि यति धर्मादि करण सितरीके गुणयुक्त रागादि शत्रुका निग्रह, करता. करणिं के फलमै निश्चय करनेवाले में प्रधान, ऋजुता, सृदुता, क्षमा, गुप्ति, मुक्ति, विद्या, मंत्र, ब्रह्मचर्य, वेद. लोकिक लोकोत्सर शास्त्र, नैगमादिनय, अभिग्रहादि नियम, वचनादि मत्यता, मनादि शौचता, ज्ञान, दर्शन व चारित्र में उदार, ईन गुनों में प्रधान.घोर करणी करनेवाले,घोर व्रत पालनेवाले,धार नपावी,घोर ब्रह्मचर्य पालनेवाले शरीरकी शुश्रूषा रहित, संक्षिप्त विपुल तेजो लेश्यावाले, चउदह पूकि पाठी, और चारज्ञानयुक्त वे पांच सो अनगार साधुके परिवार से परिबरे हुए पूर्वानु चलते ग्रामानुग्राम रहते,सुखपूर्वक विहार करते, चंपानगरी के पूर्णभद्र उद्यानमें आकर यथामतिरूप केल्यनिय वस्तुको अवग्रह याचकर संयम व तपेसे आत्माको भावतेहुचे विचरने लगे. ॥४॥ उस चंपा-नगरी की परिषदा वंदन करने को नीकली.काणिक राजा भी वंदन करने को मीकला. mmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmm साक्षप्त ( मेघकुमार) का प्रथम अध्ययन-438 488 M Jain Education Interational For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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