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अर्धमागधी आगम साहित्य : एक विमर्श
अंगबाह्यों की एक संज्ञा प्रकीर्णक भी थी। अंगप्रज्ञप्ति नामक दिगम्बर ग्रन्थ में भी अंगबाह्यों को प्रकीर्णक कहा गया है । अंगबाह्य को पुन:दो भागों में बाँटा जाता था
१.आवश्यक और २.आवश्यक-व्यतिरिक्त । आवश्यक के अन्तर्गत सामायिक आदि छ:ग्रन्थ थे । ज्ञातव्य हैं कि वर्तमान वर्गीकरण में आवश्यक को एक ही ग्रन्थ माना जाता है और सामायिक आदि ६ आवश्यक अंगों को उसके एक-एक अध्याय रूप में जाता हैं, किन्तु प्राचीनकाल में इन्हें छह स्वतन्त्र ग्रन्थ माना जाता था । इसकी पुष्टि अंगपण्णत्ति आदि दिगम्बर ग्रन्थों से भी हो जाती हैं। उनमें भी सामायिक आदि को छह स्वतन्त्र ग्रन्थ माना गया है । यद्यपि उसमें कायोत्सर्ग एवं प्रत्याख्यान के स्थानपर वैनयिक एवं कृतिकर्म नाम मिलते हैं। आवश्यक-व्यतिरिक्त के भी दो भाग किये जाते थे- १.कालिक और २.उत्कालिक । जिनका स्वाध्याय विकाल को छोड़कर किया जाता था, वे कालिक कहलाते थे, जबकि उत्कालिक ग्रन्थों के अध्ययन या स्वाध्याय में काल एवं विकाल का विचार नहीं किया जाता था । नन्दीसूत्र एवं पाक्षिकसूत्र की आगमों के वर्गीकरण की यह सूची निम्नानुसार है
श्रुत (आगम) (क) अंगप्रविष्ट
(ख) अंगबाह्य १.आचारांग २.सूत्रकृतांग (क) आवश्यक
(ख) आवश्यकव्यतिरिक्त ३.स्थानांग
१.सामायिक ४.समवायांग . २.चतुर्विंशतिस्तव ५.व्याख्याप्रज्ञप्ति ३.वन्दना ६.ज्ञाताधर्मकथा
४.प्रतिक्रमण ७.उपासकदशांग
५.कायोत्सर्ग ८.अन्तकृत्दशांग
६.प्रत्याख्यान ९.अनुत्तरौपपातिकदशांग १०.प्रश्नव्याकरण ११.विपाकसूत्र १२.दृष्टिवाद
(क) कालिक १.उत्तराध्ययन ३.कल्प ५.निशीथ
२.दशाश्रुतस्कन्ध ४.व्यवहार ६.महानिशीथ
(ख) उत्कालिक १.दशवैकालिक २.कल्पिकाकल्पिक ३.चुल्लकल्पश्रुत ४.महाकल्पश्रुत ५.औपपातिक ६.राजप्रश्नीय
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