Book Title: Agam 04 Ang 04 Samvayanga Sutram Tika
Author(s): Abhaydevsuri, Jambuvijay
Publisher: Mahavir Jain Vidyalay

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Page 544
________________ ८. घनोदधि-घनवात-तनुवातसमेतायाः त्रिकाण्डमय्या रत्नप्रभापृथिव्याः स्वरूपम् ८ - त्रिकाण्डमय रत्नप्रभा पृथ्वीसंपूर्णमान १ स्थरकाण्ड-१६ह.यो. लाख ८०ह.योजन २ पंककाष्ठ-८५ह.यो. ३ जलका-८०.यो. यो यो यो यो.यो. यो. बाप समद्रा असरच्या MADAINIK Paris - - *बाचन को खरकाण्ड 03201 A - Ac F2 NEEMS? बाजा जलकाण्ड । पककाण्ड -८० .यो. जाडाई-८४ ह-योजन उच्या श आ . . धवलय घनवात बलय म तनखात बलय SHAR का का योजन असंख्य असंख्य २० आ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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