Book Title: Agam 04 Ang 04 Samvayanga Sutram Tika
Author(s): Abhaydevsuri, Jambuvijay
Publisher: Mahavir Jain Vidyalay
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आचार्यश्रीअभयदेवसूरिविरचितटीकासहिते समवायाङ्गसूत्रे णंदे य १ णंदमित्ते २ दीहबाहू ३ तहा महाबाहू ४ । अइबले ५ महब्बले ६ बलभद्दे य सत्तमे ७ ॥१५९॥ दुविठू य ८ तिविठू य ९ आगमेसाणं वण्हिणो ।
जयंते विजए भद्दे सुप्पभे य सुदंसणे ॥ 5 आणंदे णंदणे पउमे संकरिसणे य अपच्छिमे ॥१६०॥
एतेसि णं नवण्हं बलदेव-वासुदेवाणं पुव्वभविया णव नामधेजा भविस्संति, णव धम्मायरिया भविस्संति, णव नियाणभूमीओ भविस्संति, णव नियाणकारणा भविस्संति, णव पडिसत्तू भविस्संति, तंजहा
तिलए य लोहजंघे वइरजंघे य केसरी य पहराए । 10 अपराजिये य भीमे महाभीमसेणे य सुग्गीवे य अपच्छिमे ॥१६१॥
एते खलु पडिसत्तू कित्तीपुरिसाण वासुदेवाणं । सव्वे य चक्कजोही हम्मिहिंति सचक्केहिं ॥१६२॥ जंबुद्दीवे णं दीवे एरवते वासे आगमेसाए उस्सप्पिणीए चउवीसं तित्थकरा भविस्संति, तंजहा
सुमंगले अत्थसिद्धे य, व्वाणे य महाजसे । धम्मज्झए य अरहा, आगमेसाण होक्खति ॥१६३॥ सिरिचंदे पुप्फकेऊ य, महाचंदे य केवली ।
सुयसागरे य अरहा, आगमेसाण होक्खती ॥१६४॥ १. तेरापंथिभिः जैन विश्वभारती-लाडनूंतः ईसवीये १९८४ वर्षे प्रकाशिते, स्थानकवासिभिश्च ईसवीये २००० वर्षे ब्यावरत: प्रकाशिते समवायाङ्गसूत्रेऽत्र ईदृशः पाठः- “सुमंगले य सिद्धत्थे णिव्वाणे य महाजसे । धम्मज्झए य अरहा आगमिस्साण होक्खई । सिरिचंदे पुप्फकेऊ महाचंदे य केवली । सुयसागरे य अरहा आगमिस्साण होक्खई ॥ सिद्धत्थे पुण्णघोसे य महाघोसे य केवली । सच्चसेणे य अरहा आगमिस्साण होक्खई ॥ सूरसेणे य अरहा महासेणे य केवली । सव्वाणंदे य अरहा देवउत्ते य होक्खई ।। सुपासे सुव्वए अरहा अरहे य सुकोसले। अरहा अणंतविजए आगमिस्साण होक्खई ।। विमले उत्तरे अरहा अरहा य महाबले । देवाणंदे य अरहा आगमिस्साण होक्खई ॥ एए वुत्ता चउव्वीसं एरवयम्मि केवली । आगमिस्साण होखंति धम्मतित्थस्स देसगा ॥" २. इत आरभ्य 'देवउत्ते य होक्खती' इतिपर्यन्तः पाठः ख० मध्ये द्विर्भूतः ॥
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