Book Title: Agam 04 Ang 04 Samvayanga Sutram Tika
Author(s): Abhaydevsuri, Jambuvijay
Publisher: Mahavir Jain Vidyalay

View full book text
Previous | Next

Page 529
________________ ___ आचार्यश्रीअभयदेवसूरिविरचितटीकासहितस्य स्थानाङ्गसूत्रस्य शुद्धि-वृद्धिपत्रकम् । To २५३ २५४ २८० पना ० WWWWW शुद्धपाठः तीए चउत्थचउत्थेण ववसाते पन्नत्ते खित्तं पिव [प्रथमे विभागे गाथाविवरणे शुद्धपाठाः] कहणविहि विराहणा [पृ०३९ पं०१५] एगा सिद्धी [पृ०३९ पं०१५] X पिवऽणन्नो आएसा १ मुक्कवागरणओ वा २ । परिणामः, उप भवन्ति यतो तृतीयोद्देशेऽपि ॥९॥ [पृ०१६१] सीहादिसु [पृ०१६२] नऽण्णेण उ [पृ०१६३] पंच ७ सजीवो त्ति । २२ सद्भावात् सत्यता, १३ मनसि सत्यादि मनोविषयं जगाराइ खज्जग [पृ०२५६] चारित्र [पृ०२७६] आचारस्य [पृ०३०२] एवं बंधोदीर वेय [सटीकस्य स्थानाङ्गस्य प्रथमविभागस्य प्रथमपरिशिष्टे शुद्धपाठा:] शास्त्रान्तरेषु 'अथातो... स्यामः' गणसरीरभत्त सुनिश्चिताप्तागमे १४ घाओ भवइ अनुक्रमेण आनु पुरोहियघरं ० ० ० १०० १०३ १०५ १०६ १३८ १४८ १७१ १७१ ८ Www Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 527 528 529 530 531 532 533 534 535 536 537 538 539 540 541 542 543 544 545 546 547 548 549 550 551 552 553 554 555 556 557 558 559 560 561 562 563 564 565 566