Book Title: Agam 04 Ang 04 Samvayanga Sutram Tika
Author(s): Abhaydevsuri, Jambuvijay
Publisher: Mahavir Jain Vidyalay

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Page 471
________________ ४० १५८ ४२ १५७ समवायाङ्गसूत्रान्तर्गतविशिष्टशब्दसूचिः । विशिष्टशब्दाः सूत्राङ्काः | विशिष्टशब्दाः सूत्राङ्काः |विशिष्टशब्दाः सूत्राङ्काः समचउरंससंठाणणामं २८ (१) समुच्छिमभुयपरिसप्प ४२ सरगयं समचउरंससंठाणसंठिते १५२ समुद्द। ४२, १३८ सरणदय १ (२) समण १(२), ७(१), ११(२), समुद्ददत्त | सरण्णा १५८ १४ (१), १८ (१), समुद्दनाम सरीर १५२ ३० (१), ३६, ४२, ५३, | समुद्दपालिजं ३६ सरीरंगोवंगणाम ४२ ५४, ५५, ७०, ७२, ८२, समुद्दविजय १५७, १५८ | सरीरणाम ४२ ८३, ८९, १०४, १०६, समुद्देसगसहस्स १४० | | सरीरत्थ ८ (१) ११०, १११, १३४ समुद्देसणकाला १३६, १३७, सरीरप्पमाणमेत्ता १५२ समणधम्म १० (१)। १३८, १३९, १४१, १४२, | सरीरबंधणणाम समणभूते १४३, १४४, १४५, १४६ सरीरमेत्तीओ समणसंपदा १४ (१), समोसरण १२ (१), १६ (१), | सरीरसंघायणणाम ४२ १६ (२), १८ (१), ६८/ २३ (१), १४१, १४२, | सरीरोगाहणा १५२ समणसाहस्सीओ १४ (१)। १४३, १४४, १४६, १५७ सलिला १३८ समणाउसो ११ (१) सम्मत्त ५ (१), ९ (१), १५३ | सल्ला ३ (१) समतालं ७२ सम्मत्तविसुद्धता १४२| सवण ९ (२) समत्तभरहाहिवाण १३९ सम्मत्तवेयणिजं २८ (१) सवणणक्खत्त ३ (२) समत्तसुयणणि १४७ सम्मद्दिट्ठी २९ (१), ३२ (१) |सवीसतिराते ७० समप्पभं ७ (३) सम्ममिच्छत्तवेयणिजं २८ (१) सवीसतिरायमासिया २८ (१) समभिरूढं १४७ | सम्मा १५७ सवेइया १५७ समयखेत ३९, ४५, ६९ सम्मामिच्छदिट्ठी १४ (१) सव्व समवाय १ (२), १३६, १३९ सम्मुई १५८ | सव्वओभदं समाए १३९, १५९ | सम्मुच्छिममणूसा १५५ सव्वओ समंता ३४ समाणं १८ (३) सयंपभ १६ (१), १५७, १५८ | सव्वकामविरत्तया ३२ (१) समायारे १३९ सयंभु ६ (४), ९०, १५७ | सव्वजगवच्छल १५७ समाहि १६ (१), २३ (१), सयंभुरमणं ६ (४) सव्वजणणयणकंता १५८ ३२ (१), १५८ सयंसंबुद्धं १ (२) सव्वजहण्णिया १२ (१) समाहिट्ठाण ३६ सयणविहिं ७२ सव्वट्ठसिद्ध १ (४), १२ (१), समिति ५ (१), ३६ सयधणू १५८ ३० (१), ३३ (३) समितिगुत्ती १४३ | सयभिसया १०० | सव्वट्ठसिद्धया १४९ समिरीया १५० सयारब्भ ३० (१) सव्वण्णु १ (२), ५४, ८३ समुग्घाय ६ (१), ७ (१) सर २९ (१), ३४, १३८ सव्वतित्थाण ३० (१) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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