Book Title: Agam 04 Ang 04 Samvayanga Sutram Tika
Author(s): Abhaydevsuri, Jambuvijay
Publisher: Mahavir Jain Vidyalay

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Page 513
________________ ८२ तित्थोगालियप्रकीर्णके विद्यमानाः आगमवाचनादि-विच्छेदसम्बन्धिन: अंशाः। 'मा भाहि नित्थरीहिसि अप्प(?य) तरएण वीर ! कालेणं । मज्झ नियमो समत्तो पुच्छाहि दिवा य रत्तिं च' ॥७५१।। सो सिक्खिउं पयत्तो दिट्ठत्थो सुटु दिट्ठिवायम्मि पुव्वक्खतोवसमियं पुव्वगतं पुव्वनिद्दिलं ॥७५२॥ संपति एक्कारसमं पुव्वं अतिवयति वणदवो चेव । झत्ति तओ भगिणीतो दट्ठमणा वंदणनिमित्तं ॥७५३॥ जक्खा य जक्खदिण्णा भूया तह हवति भूयदिण्णा य । सेणा वेणा रेणा भगिणीतो थूलभद्दस्स ॥७५४|| एया सत्तं जणीओ बहुस्सुया नाण-चरणसंपण्णा । सगडालबालियातो भाउं अवलोइउं एंति ॥७५५।। तो वंदिऊण पाए सुभद्दबाहुस्स दीहबाहुस्स । पुच्छंति 'भाउओ णे कत्थ गतो थूलभद्दो ?' त्ति ॥७५६।। अह भणइ नंदराया ‘लाभो ते धीर ! नित्थराहि य णं' । 'बाढं' ति भाणिऊणं अह सो संपत्थितो तत्तो ॥७९३।। अह भणति नंदराया 'वच्चइ गणियाघरं जइ कहंचि । तो णं असच्चवादी तीसे पुरतो विवाएमि' ॥७९४।। सो कुलघरसामिद्धिं गणियाघरसंतियं च सामिद्धिं । पाएण पणोल्लेउं नीती नगरा अणवयक्खो ॥७९५॥ जो एवं पव्वइओ एवं सज्झाय-झाणउज्जुत्तो । गारवकरणेण हिओ सीलभरूव्वहणधोरेयो ||७९६।। जह जह एही कालो तह तह अप्पावराहसंरद्धा । अणगारा पडिणीते निसंसयं उवद्द(?उद्द)वेहिति ॥७९७|| उप्पायणीहि अवरे, केई विजाय उप्पइत्ताणं । विउरुव्विहि विजाहिं दाई काहिंती उड्डाहं ॥७९८।। मंतेहि य चुण्णेहि य कुच्छियविजाहि तह निमित्तेणं । काऊणं उबघायं भमिहिंति अणंतसंसारे" ॥७९९।। अह भणइ थूलभद्दो ‘अन्नं रूवं न किंचि काहामो । इच्छामि जाणिउं जे अहयं चत्तारि पुव्वाई' ॥८००। 'नाहिसि तं पुव्वाई सुयमेत्ताइं च उग्गहाहिति । दस पुण ते अणुजाणे, जाण पणट्ठाई चत्तारि' ॥८०१।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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