Book Title: Agam 04 Ang 04 Samvayanga Sutram Tika
Author(s): Abhaydevsuri, Jambuvijay
Publisher: Mahavir Jain Vidyalay

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Page 510
________________ षष्ठं परिशिष्टम् । तित्थोगालियप्रकीर्णके विद्यमानाः आगमवाचनादि - विच्छेदसम्बन्धिनः अंशाः । अम्हं आयरियाणं सुतीए कण्णाहडं च सोउं जे । तित्थोगाली एयं एगमणा मे निसामेह ॥७०७।। तिण्णिय वासा मासट्ठ अद्ध बावत्तरी च सेसाई । सेसाए चउत्थीए तो जातो वड्डमाणरिसी ॥७०८।। अट्ट य सऽद्धा मासा तिन्नेव हवंति तह य वासाई । सेसाए चउत्थीए तो कालगतो महावीरो ॥७०९।। तम्मि गए गयरागे वोच्छिन्नपुणब्भवे जिणवरिंदे । तित्थोगालिसमासं एगमणा मे निसामेह ॥७१०॥ नाणुत्तमस्स धम्मुत्तमस्स धम्मियजणोवदेसस्स । आसि सुधम्मो सीसो वायरधम्मो य (?प)उरधम्मो ॥७११।। तस्स वि य जंबुणाभो जंबूणयरासितवियसमवण्णो । तस्स वि पभवो सीसो, तस्स वि सेजंभवो सीसो ॥७१२॥ सेजंभवस्स सीसो जसभद्दो नाम आसि गुणरासी । सुंदरकुलप्पसूतो संभूतो नाम तस्सावि ॥७१३।। सत्तमतो थिरबाहू जाणुयसीससुपडिच्छियसुबाहू । नामेण भद्दबाहू अविही(हिं)सा धम्मभद्दो त्ति ॥७१४।। सो वि य चोद्दसपुव्वी बारस वासाई जोगपडिवन्नो । सत्तऽत्थेण निबंधइ अत्थं अज्झयणबंधस्स ॥७१५॥ बलियं च अणावुठ्ठी तइया आसी य मज्झदेसस्स । दुब्भिक्खविप्परद्धा अण्णं विसयं गया साहू ॥७१६।। केहि वि विराहणाभीरुएहिं अइभीरुएहिं कम्माणं । समणेहिं संकिलिलै पच्चक्खायाई भत्ताई ॥७१७।। वेयडकंदरासु य नदीसु सेढी-समुद्दकूलेसु । इहलोगअपडिबद्धा य तत्थ जयणाए वर्टेति ॥७१८।। ते आगया सुकाले सग्गगमणसेसया ततो साहू । बहुयाणं वासाणं मगहाविसयं अणुप्पत्ता ।।७१९।। ते दाई एक्कमेक्कं गयमयसेसा चिरं सुद₹णं । परलोगगमणपच्चागय व्व मण्णंति अप्पाणं ॥७२०।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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