Book Title: Agam 04 Ang 04 Samvayanga Sutram Tika
Author(s): Abhaydevsuri, Jambuvijay
Publisher: Mahavir Jain Vidyalay

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Page 507
________________ ७६ श्रीसमवायाङ्गसूत्रटीकायां ग्रन्थान्तरेभ्यः साक्षितयोद्धृतानां पाठानामकारादक्रमेण सूचिः । पृष्ठाङ्कः . २१४ २९२ २६८ उद्धृतपाठः पृष्ठाङ्कः | उद्धृतपाठः . सव्वेसिं आयारो पढमो [आचा० नि० ८] २५० सूच सूचायाम् [ ] सव्वेसिं उत्तरो मेरु [ ] ६३ | सूरे सुदंसणे कुंभे... [आव. नि० ३८९] सहसंमुईयाए समणे [आचा० सू०७४३] ३ | सेसा य तिरियमणुया... [ ] . मागरमेगं १ तिय २... [बृहत्सं० गा० २३३] २१ सोलस भागे काऊण... . सुग्गीवे दढरहे विण्हू.. [आव० नि० ३८८] २९२] [ज्योतिष्क० १११] सुजसा सुव्वय.. [आव० नि० ३८६] २९२ हट्ठस्स अणवगल्लस्स,... सुद्धस्स चउत्थीए... [ज्योतिष्क० २४८] १६४] [भगवती० ६७।४] सुद्धस्स य दसमीए... [ज्योतिष्क० २५१] १६३ | हरिवासे इगवीसा.. [बृहत्क्षेत्र. ३१] सुमइऽत्थ निच्चभत्तेण... [आव० नि० २२८] २९३ ६०,१५२ १६९ २०६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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