Book Title: Agam 04 Ang 04 Samvayanga Sutram Tika
Author(s): Abhaydevsuri, Jambuvijay
Publisher: Mahavir Jain Vidyalay

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Page 505
________________ ६६ ७४ श्रीसमवायाङ्गसूत्रटीकायां ग्रन्थान्तरेभ्यः साक्षितयोद्धतानां पाठानामकारादक्रमेण सूचिः । उद्धृतपाठः पृष्ठाङ्कः | उद्धृतपाठः पृष्ठाङ्कः किण्हं राहुविमाणं निच्चं... [सूर्यप्र० १९] १५२ तेवट्ठि सहस्साई... [बृहत्क्षेत्र० ३१४] १३१ कृष्णादिद्रव्यसाचिव्यात्.. [ ] २४ | तेवन्नसहस्साइं नव य... [बृहत्क्षेत्र. ५६] १४४ गावी जुए संगामे.. [आव० प्रक्षेप०] ३०५ |दसणवय [पञ्चाशक० १०॥३] १८९ गोयमा ! जहण्णेणं... [प्रज्ञापना० ६५६९] । २८२ दस चेव सहस्साइं... [बृहत्क्षेत्र० ४५] १९४ चंदजस चंदकंता.. [आव० नि० १५९] दस जोयणसहस्सा... [बृहत्क्षेत्र० ४१५] ६६ २९१ दस नवगं गणाण माणं... [आव० नि० २६८] २९ चउ ४ तिय ३ चउरो ४... [ ] २१८ दाहिण दिवड्ड पलियं... [बृहत्सं० ५] ११ चउणउइसहस्साई... [बृहत्क्षेत्र० ६०] १९१ | |दुविहा पण्णवणा पण्णत्ता... [प्रज्ञापना० ३] २५६ चउवीस सहस्साइं नव य... [बृहत्क्षेत्र० ५२] ८६ | देसूणमद्धजोयण लवणसिहोवरि.. चउवीसई मुहुत्ता [बृहत्सं० २८१] २८१] [बृहत्क्षेत्र० ४१६] चत्ताला सत्त सया... [बृहत्क्षेत्र० ५५] १३१,१५७ | देहं विमलसुयंधं [ ] २३६ चत्तारि जोयणसए... [बृहत्क्षेत्र० ४२२] ६७ | दो १ साहि २ सत्त... [बृहत्सं० गा० १२] २२ चूलियसीसपहेलिय चोहस... [ ] १८० |दो देसूणुत्तरिल्लाणं... [बृहत्सं० ५] १५ चेत्तासोएसु मासेसु.. [उत्तरा० २६।१३] १३३,१३० | दो वारे विजयाइसु... [विशेषाव० ४३६] १५६ चोद्दस लक्खा सिद्धा.. [ ] २५३ धणुपट्ठ कलचउक्कं... [बृहत्क्षेत्र० ५३] १५७ धणुपट्ठ कलचउक्कं... [बृहत्क्षेत्र० ५९] १७९ जइ एगिदियवेउव्वियसरीरए किं... धम्मो मंगलमुक्कळं [दशवै० ११] ८२,२४८ [प्रज्ञापना सू० १५१५] २७२ नरकाः सीमन्तकादिका... [सूत्रकृताङ्गवृ० ] २५८ जस्स जइ सागरोवम ठिई... [बृहत्सं० २१४] १३ नव चेव सहस्साइं... [बृहत्क्षेत्र० ४३] १९४ जा पढमाए जेट्ठा...[बृहत्सं० गा० २३४] २२ /नवबंभचेरमइओ अट्ठारसपद.. तह देसकालजाणण ... [ ] १८८ [आचा० नि० ११] २१२ तिण्णि सया तेत्तीसा... [आव० नि० ९७१] १९८ नवबंभचेरमइओ... [आचारा० नि० ११] ७१ तित्थयर १ धम्म २ आयरिय... [ ] १८७ | नवमो य महापउमो.. [आव. नि० ३७५] २९५ तिनेव उत्तराई पुणव्वसू.. [जम्बू० प्र०] १५९ नाणं ५ तराय ५ दसगं... [कर्मस्तव० २।२३] ६८ तिविठू य दुविठू य ... [आव० भा० ४०] ३०५ नाभी जियसत्तू या.. [आव० नि० ३८७] २९२ तिहिं ठाणेहिं तारारूवे.. नारयदेवा तिरिमणुयगब्भया... [ ] २६८ निग्गंथ-सक्क-तावस-... [पिण्डनि० ४४५] २१० [स्थानाङ्ग० सू० १४१] २१९ |निच्चंधयारतमसा ववगयगहचंद.. [ ] २५९ तीसा य १ पण्णवीसा.. [बृहत्सं० २५५] १७९ | नेरइए णं भंते ! नेरइएसु.. ते सोहिज्जंति फुडं.. [नन्दी० हारि०] २३०| भगवती० ४/९/१७३] २८० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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