Book Title: Agam 04 Ang 04 Samvayanga Sutram Tika
Author(s): Abhaydevsuri, Jambuvijay
Publisher: Mahavir Jain Vidyalay

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Page 488
________________ तृतीयं परिशिष्टम् । ५७ ण कहे इत्थीण कहं तु पंचमा एसा । सद्दा रूवा गंधा रस फासा पंचमी एए ॥११॥ रागद्दोसविवजण अपरिग्गहभावणाउ पंचेव । सव्वा पणवीसेया एयासु न वट्टियं जं तु ॥१२॥” इति आवश्यकसूत्रस्य चतुर्थेऽध्ययने हारिभद्र्यां वृत्तौ ।। [पृ०१२० पं०७] "सुयं मे आउसंतेण भगवया एवमक्खायं-इह खलु थेरेहिं भगवंतेहिं तेत्तीसं आसायणाओ पन्नत्ताओ, कतराओ खलु ताओ थेरेहिं भगवंतेहिं तेत्तीसं आसायणाओ पन्नत्ताओ? 5 इमा खलु ताओ थेरेहिं भगवंतेहिं तेत्तीसं आसायणाओ पन्नत्ताओ, तंजधा- सेहे रातिणियस्स पुरतो गंता भवति, आसादणा सेहस्स ॥१॥ सेहे रायणियस्स सपक्खं गंता भवति, आसायणा सेहस्स ॥२॥ सेहे रायणियस्स आसन्नं गंता भवति, आसयणा सेहस्स ॥३॥ एवं एएणं अभिलावेणं सेहे रातिणियस्स पुरओ चिट्ठित्ता भवति, आसायणा सेहस्स ॥४॥ सेहे राईणियस्स सपक्खं चिट्ठित्ता भवति, आसायणा सेहस्स ॥५॥ सेहे रायणियस्स आसन्नं चिट्ठित्ता भवति, आसादणा सेहस्स 10 ॥६॥ सेहे रायणियस्स पुरतो निसीइत्ता भवति, आसादणा सेहस्स ॥७॥ सेहे रायणियस्स सपक्खं निसीइत्ता भवति, आसादणा सेहस्स ॥८॥ सेहे रायणियस्स आसन्नं निसीइत्ता भवति, आसादणा सेहस्स ॥९॥ सेहे रायणियेण सद्धिं बहिया विहारभूमि वा वियारभूमिं वा निक्खंते समाणे पुव्वामेव सेहतराए आयामेइ पच्छा रायणिए, आसादणा सेहस्स ॥१०॥ सेहे रायणिएण सद्धिं बहिया विहारभूमि वा वियारभूमिं वा निक्खंते समाणे तत्थ पुवामेव सेहतराए आलोएति पच्छा रायणिए, 15 आसायणा सेहस्स ॥११॥ केइ रायणियस्स पुव्वं संलवत्तए सिया ते पुव्वामेव सेहतरए आलवेति पच्छा रातिणिए, आसायणा सेहस्स ॥१२॥ सेहे रातिणियस्स रातो वा विआले वा वाहरमाणस्स अज्जो केइ सुत्ते ? के जागरे ? तत्थ सेहे जागरमाणे रातिणियस्स अपडिसुणेत्ता भवति, आसादणा सेहस्स ॥१३॥ सेहे असणं वा ४ पडिग्गहित्ता पुव्वामेव सेहतरागस्स आलोएइ पच्छा रायणियस्स, आसादणा सेहस्स ॥१४॥ सेहे असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा पडिगाहेत्ता पुव्वामेव 20 सेहतरागस्स पडिदंसेति पच्छा रायणियस्स, आसादणा सेहस्स ॥१५॥ सेहे असणं वा ४ पडिग्गाहेत्ता : तं पुव्वामेव सेहतरागं उवणिमंतेति पच्छा रायणियस्स, आसादणा सेहस्स ॥१६॥ सेहे रायणिएण सद्धिं असणं वा ४ पडिग्गाहेत्ता तं रायणियस्स अणापुच्छित्ता जस्स जस्स इच्छइ तस्स तस्स खद्धं खद्धं दलयइ, आसादणा सेहस्स ॥१७॥ सेहे असणं वा ४ पडिग्गाहित्ता राइणिएण सद्धिं आहारेमाणे तत्थ सेहे खद्धं खद्धं डाअं डाअं रसितं रसियं ऊसढं ऊसढं मणुण्णं मणुण्णं मणामं 25 मणामं निद्धं निद्धं लुक्खं लुक्खं आहारेत्ता भवइ, आसादणा सेहस्स ॥१८॥ सेहे रायणियस्स वाहरमाणस्स अपडिसुणित्ता भवइ, आसादणा सेहस्स ॥१९॥ सेहे रायणियस्स वाहरमाणस्स तत्थगते चेव पडिसुणेत्ता भवति, आसायणा सेहस्स ॥२०॥ सेहे रायणियस्स किं ति वइत्ता भवति, आसादणा सेहस्स ॥२१॥ सेहे रायणियं तुमं ति वत्ता भवति, आसादणा सेहस्स ॥२२॥ सेहे रायणियस्स खद्धं खद्धं वत्ता भवति, आसादणा सेहस्स ॥२३।। सेहे रायणियं तज्जाएण तज्जाएण पडिभणित्ता 30 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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