Book Title: Agam 04 Ang 04 Samvayanga Sutram Tika
Author(s): Abhaydevsuri, Jambuvijay
Publisher: Mahavir Jain Vidyalay

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Page 467
________________ ३६ ३० (१) २९ (१) समवायाङ्गसूत्रान्तर्गतविशिष्टशब्दसूचिः । विशिष्टशब्दाः सूत्राङ्काः | विशिष्टशब्दाः सूत्राङ्काः विशिष्टशब्दाः सूत्राङ्काः वातलेसं ५ (४) वाही __३४ विणओवए ३२ (१) वातसिंग ५ (४) विअट्टच्छउम १ (२) विणतं १९ (३) वातसिट्ठ ५ (४) विअडभोती ११ (१) विणयकरणजिणवातावत्तं ५ (४) विआहिजति १४० सामिसासणवरे १४१ वादिसंपया १०६ विओसग्गे ३२ (१) | विणयसुयं वादी १०६, १०९, १४७ विंटट्ठाइणा ३४ विणीता १५७ वामण १५५ विकहाणुयोग २९ (१) विण्णात १३६, १३७ वाय ५ (४) विकुव्वणया १५३ विण्ह १५७ वायणा १३६, १३९, १४० ६४ वितिमिरा १५० वायुकुमार ९६ | विक्खंभुस्सेहपरिरयप्पमाणं १३९ | वित्तम्मि वायुभूती ११ (२) विक्खोभइत्ताणं ३० (१) वित्ती वाराह १५७, १५८ विगहा वित्तीसंखेवो ६ (१) वारिमज्झे ३० (१) विगसितसतवत्तपुंडरी- वित्थरधम्मसवण १४२ वारिसेणं यतिलयरयणद्ध- | विदब्भ १५७ वारुणि १५७ | चंदचित्ता विधिविसेस १३९ वालुए २५ (१) | विगाहिया ३० (१) विद्धिकराई १० (२) वावहारिए __ ९६ | विजय ९ (२), १२ (१), विपच्चवियं १४७ वासकोडिं १३४ ३० (१), ३१ (२), विपुलकुलसमुब्भवा १५८ वासधरपव्वय ३२ (३), ३३ (२), ३७, विपुलवाहण १५८ वासहर ३९, ६९ ६८, ७३, १४९, १५१, विप्पजहणसेणियापरिकम्मे १४७ वासहर-कूडा १०८ १५७, १५८, | विभज्ज ३० (१) वासहरपव्वय ७ (१), विजयबारस्स। ५५ विमल ७ (३), २२ (३), २४ (१), ७४, ८२ विज्जाअणुप्पवायं १४ (१) ४४, ५६, ६०, ६८, वासा ७(१),६९, १२१, १३९ विजागतं ७२ १५७, १५८ वासावासं ७० विजाणुजोग २९ (१) विमलघोस १५७ वासुदेव १० (१), ३५, ५०, विज्जातिसया १४५ विमलावाहण ११२, १५७, १५८ ५४, ६८, ८०, ८४, विज्जाहरसेढी १५२ विमाणपत्थडा ६२ ९०, १३३, १५८ | विज्जुकुमारावास ७६ विमाणपविभत्ती ३७, ३८, वासुदेवगंडियाओ १४७ | विज्जुकुमारिंद ७६, १४९ ४०, ४१, ४२, वासुदेवमातरो १५८ | विजुप्पभ १०८ ४३, ४४, ४५ वासुपुज ६२, ७०, १०९, १५७ | विणओ ६ (१) विमाणपागारा १०४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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