Book Title: Agam 04 Ang 04 Samvayanga Sutram Tika
Author(s): Abhaydevsuri, Jambuvijay
Publisher: Mahavir Jain Vidyalay

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Page 447
________________ १६ ४६ ૬૬ १५७, १५८ २२ (१ छिरा समवायाङ्गसूत्रान्तर्गतविशिष्टशब्दसूचिः । विशिष्टशब्दाः सूत्राङ्काः | विशिष्टशब्दाः सूत्राङ्काः | विशिष्टशब्दाः सूत्राङ्काः छाउमत्थिया ६ (१) जम्मभूमीसु १५७ जाणुस्सेहप्पमाणमेत्ते ३४ छायए ३० (१) जय १५८ जातिकुलकोडीजोणिपछायंसी १५८ जयंत ३१ (१), ३२ (३), मुहसतसहस्सा १३ (१) छायालीसं ३३ (२), ३७, ५५, जातिणाम जातिणाम ४२ छावडिं १४९, १५१, १५८ जातिनामनिधत्ताउगं १५४ छिण्णछेयणइयाणि १४७ जयंती १५७, १५८ जातिमए ८ (१) छिन्नछेयणयियाई २२ (१) |जया जायणपरीसह १५५ / जर-मरण-जोणिसंखुभि- जायतेयं ३० (१) छेयणाओ १९ (१)। तचक्कवालं १४६ | जालंतररयणपंजरुम्मिलित १७० छेवट्ठसंघयण १५५ |जरमरणसासणकरे १४१ जाला १५८ जए १५७ जरासंध १५८ जिण १ (२), ७५, ३० (१) जंतमुसलमुसंढिसतग्घी- | जलथलयभासुरपभूत ३४ जिणपण्णत्त १३६ परिवारिता १५० जलयरपंचेंदियतिरिक्ख- जिणपूयट्ठी ३० (१) जंबुद्दीव १ (४), ९ (२), जोणि १३ (१) जिणवयणमणुगयमहि११ (२), १२ (१), जल्लपरीसह २२ (१) यभासिता १४४ १९ (१), २३ (२), जवणालिया १८ (१) | जिणवरप्पणीया १४५ २७ (१), ३४, ४३, ५६, जस ८ (१) जिणवरभत्तीय १५७ ६५, ७९, ८०, ८२, ९५, जसंसी १५८ जिणसकहा १०२, १३०, १५७, १५८ जसकित्तिनामं २८ (१) | जिणसता ७५ जंबू ८ (१), १५७ | जसमं १५७/जिणसमीव १४४ जंबूदीव १२४ जसवती १५८ जिणातिसेसा १४४ जंबूद्दीविया ३० (१) जिब्भछेयण १४६ जक्ख ३० (१) जसे १५७ जिभिंदियअत्थोग्गह ६ (१) जखिणी १५७ जसोकित्तिणा(ना)म ४२,१७(१) जिन्भिंदियत्थोग्गह २८ (१) जगजीवहित जहण्ण १ (६) जिभिंदियवंजणोग्गह २८ (१) जगती ८ (१) जहाजायं १२ (१) | जिब्भियाए जण्णतिजं ___३६ | जहाणामए १४८ जियपरीसहकसायसेण्णजतिवंस १५९ जाणएणं १ (२) धितिधणियसंजमउच्छाजमगपव्वया ११३ जाणमाणो ३० (१) हनिच्छियाणं १४१ जमतीते १६ (१), २३ (१) जाणवयं ७२ | जियसत्तू १५७ जम्मणाणि १४७ जाणविमाण १ (४) जियारी १५७ ३५ ८ (१) |जससा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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