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अर्धमागधी आगम साहित्य : एक विमर्श ऐसा लगता है कि माथुरी वाचना में न केवल कालिक सूत्रों का अपितु उस काल तक रचित सभी ग्रन्थों के संकलन का काम किया गया था । ज्ञातव्य है कि यह माथुरी वाचना अचेलता की पोषक यापनीय परम्परा में भी मान्य रही है । यापनीय ग्रन्थों की व्याख्याओं एवं टीकाओं में इस वाचना के आगमों के अवतरण तथा इन आगमों के प्रामाण्य के उल्लेख मिलते हैं। आर्य शाकटायन ने अपने स्त्री-निर्वाण प्रकारण एवं अपने व्याकरण की स्वोपज्ञटीका में न केवल मथुरा आगम का उल्लेख किया है, अपितु उनकी अनेक मान्यताओं का निर्देश भी किया है तथा अनेक अवतरण भी दिये हैं । इसी प्रकार भगवतीआराधना की अपराजित की टीका में भी आचारांग, उत्तराध्ययन, निशीथ आदि के अवतरण पाये जाते हैं, यह हम पूर्व में कह चुके हैं।
आर्य स्कंदिल की माथुरी वाचना वस्तुत: उत्तर भारत के निर्ग्रन्थ संघ के सचेल-अचेल दोनों के लिये मान्य थी और उसमें दोनों ही पक्षों के सम्पोषक साक्ष्य उपस्थित थे । यहाँ यह प्रश्न स्वाभाविक रूप से उठता हैं कि यदि माथुरी याचना उभय पक्षों को मान्य थी तो फिर उसी समय नागार्जुन की अध्यक्षता में वल्लभी में वाचना करने की क्या आवश्यकता थी । मेरी मान्यता हैं कि अनेक प्रश्नों पर स्कंदिल और नागार्जुन में मतभेद रहा होगा । इसी कारण से नागार्जुन को स्वतन्त्र वाचना करने की आवश्यकता पड़ी ।
इस समस्त चर्चा से पं.कैलाशचन्द्रजी के इस प्रश्न का उत्तर भी मिल जाता है कि वल्लभी की दूसरी वाचना में क्या किया गया ? एक ओर मुनि श्री कल्याणविजयजी की मान्यता यह है कि वल्लभी में आगमों को मात्र पुस्तकारूढ़ किया गया तो दूसरी ओर पं.कैलाशचन्द्रजी यह मानते हैं कि वल्लभी में आगमों को नये सिरे से लिखा गया, किन्तु ये दोनों ही मत मुझे एकांगी प्रतीत होते हैं । यह सत्य है कि वल्लभी में न केवल आगमों को पुस्तकारूढ़ किया गया, अपितु उन्हें संकलित एवं सम्पादित भी किया किन्तु यह संकलन एवं सम्पादन निराधार नहीं था । न तो दिगम्बर परम्परा का यह कहना उचित है कि वल्लभी में श्वेताम्बरों ने अपनी मान्यता के अनुरूप आगमों को नये सिरे से रच डाला और न यह कहना ही समुचित होगा कि वल्लभी में जो आगम संकलित किये गये वे अक्षुण्ण रूप से वैसे ही थे जैसे- पाटलीपुत्र आदि की पूर्व वाचनाओं में उन्हें संकलित किया गया था । यह सत्य है कि आगमों की विषय-वस्तु के साथ-साथ अनेक आगम ग्रन्थ भी कालक्रम में विलुप्त हुए हैं। वर्तमान आगमों का यदि सम्यक् प्रकार से विश्लेषण किया जाय तो इस तथ्य की पुष्टि हो जाती है। आज आचारांग का सातवाँ अध्ययन विलुप्त है । इसी प्रकार अन्तकृद्दशा, अनुत्तरौपपातिक व विपाकदशा के भी अनेक अध्याय आज अनुपलब्ध हैं । नन्दिसूत्र की सूची के अनेक आगम ग्रन्थ आज अनुपलब्ध हैं । इस सम्बन्ध में विस्तृत चर्चा हमने आगमों के विच्छेद की चर्चा के प्रसंग में की है । ज्ञातव्य है कि देवर्धि की वल्लभी वाचना में न केवल आगमों को पुस्तकारूढ़ किया गया है, अपितु उन्हें सम्पादित भी किया गया हैं। इस सम्पादन के कार्य में उन्होंने आगमों की अवशिष्ट उपलब्ध विषय-वस्तु को अपने ढंग से पुन: वर्गीकृत भी किया था और परम्परा या अनुश्रुति से प्राप्त आगमों के वे अंश जो उनके पूर्व की वाचनाओं
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