Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutanga Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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समयार्थबोधिनी टीका प्र. श्रु. अ. २ उ. २ निजपुत्रेभ्यः भगवदादिनाथोपदेशः
५९५ ।।
कुजये अपराजिए जहा अखेहिं कुसलेहिं दीवयं कडमेव गहाय णो कलिं नो तीयं नो चेव दावरं ॥२३॥
छायाकुजयोऽपराजितो यथाक्षैः कुशलो दीव्यन् । कृतमेव गृहीत्वा नो कलिं नो ते नो चैव द्वापरम् ॥२३॥
अन्वयार्थः( अपराजिए ) अपराजितः अन्येन जेतुमशकयः ( कुसलेहिं )=कुशल इत्यर्थः (कुजए) कुजयः (जहा) यथा (अक्खेहिं) अक्षैः कपर्दै: (दीवयं) दीव्यन=
शब्दार्थ-'अपराजिए-अपराजितः' अन्य के द्वारा पराजित न होने वाला 'कुसलेहि-कुशलः' चतुर 'कुजए-कुजयः' जुआ खेलने वाले जुआरी 'जहा-यथा' जैसे 'अक्खेहि-अक्षैः' पासा से 'दीवयं-दीव्यत्' खेलता हुआ 'कडमेव गहाय-कृतमेव गृहीत्वा' कृत नाम के चौथे स्थान को ही ग्रहण करता है 'णो कलिं--नो कलिम्' कलि नामक प्रथम स्थान को ग्रहण नहीं करता है 'णो तीयं-नी त्रैतं, तीसरे स्थान को भी ग्रहण नहीं करता हैं एवं 'नो चेव दावरं -नैव द्वापरम्, दूसरे स्थान को भी ग्रहण नहीं करता है।॥२३॥
-अन्वयार्थअपने विरोधी से पराजित न होने वाले कुशल अर्थात् पासा फेंकने में चतुर जुआरी जैसे पासों से जुआ खेलता हुआ ‘कृत' स्थान को ही ग्रहण करता है । कलि नामक
शहा---'अपराजिए-अपराजितः' मीना द्वारा परात न थवावा 'कुसलेहि कुशलः' याला यतु२ 'कुजए-कुजयः' गा२ २भा वाणा मुगारी 'जहा-यथा' वा शते 'अक्खेहि-अक्षः' पासाथी 'दीवय-दीव्यन्' २भता 'कडमेव गहाय-कृतमेव गृहीत्वा' इत नामना व्याथा स्थानने १ अहए ४२ छ. 'णो कलिं-नो कलिम्' मनामना प्रथम स्थानने अड ४२ते। नथी ‘णो तीय-नो त्रीत' alon स्थानने ५ अ ४२ता नथी अवम् ‘णो चेव दावर-नैव द्वापरम्' मी स्थानने ५४ ४ ४२ते नथी. ॥२३॥
___ -सूत्रार्थપિતાને વિરોધીઓ વડે પરાજિત ન થનાર, કુશળ (પાસા ફેકવામાં કુશળ) જુગારી पास ३४ती मते "त" नामना याथा स्थानने अड ४२ छ, 'सी' नामना
શ્રી સૂત્ર કૃતાંગ સૂત્ર: ૧