Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutanga Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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समयाबंबोधिनी टीका प्र. . अ. २ उ. ३ साधूनां परिषहोपसर्गसहनोपदेशः ६४१
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अन्वयार्थ:(जहा) यथा वा (याण) वाहकेन (विच्छए) विक्षतः ताडितः (पचोइए) प्रचोदितःप्रेरितः (अबले गवं) अबलो गौः दुलो गौः न प्रचलति किन्तु (से) सः (अप्पथामए) अल्पस्थामा =अल्पसामर्थ्यवान् (अबले) अबलो = दुर्बलः (अंतसो ) अंतशः मरणान्तमपि (नाइवहइ) नातिवहति-भारं वोटु समर्थों न भवति अपि तु (विसीयइ) विषीदति पंकादौ इति ॥५॥
सूत्रकार पुनः उपदेश करते है-"याहेण जहा" इत्यादि ।
शब्दार्थ-'जहा-यथा' जिसप्रकार 'बाहेण-वाहेन' गाडीवान् के द्वारा 'विच्छए-विक्षतः' चाबुक मारकर 'पचोइए-प्रचोदितः' प्रेरित किया हुआ 'अबले गवं-अबलो गौः' दुर्बल बैल चलता नहीं है, परंतु 'से-सः' वह 'अप्पथामए-अल्पस्थामा' अल्पसामर्थ्य याला 'अबले-अबलः' दुर्बल बैल 'अंतसो-अन्तशः' मरण पर्यन्तभी 'नाइयहइ-नातिवहति' भारवहन नहीं कर सकता है परंतु 'विसीयइ-विषीदति' कीचड आदि में फंसकर क्लेश भोमता है ॥५॥
-अन्वयार्थजैसे वाहक (गाडीवान्) के द्वारा ताडना पाने पर और प्रेरित होने पर भी दुर्बल बैल चलता नहीं, सामर्थ्यहीन और निर्वल होने के कारण मरण पर्यन्त भी यह भार वहन करने में समर्थ नहीं होता, किन्तु कीचड आदि में फस कर दुःखी होता है ॥५॥
सूत्रा२ मागण पहेश मापता छ - "वाहेण जहा" त्या:
शहाथ-'जहा-यथा' प्रारे 'वाहेण-वाहेन' गाडीवाना द्वारा 'विच्छएविक्षतः' या ४ भारीने ‘पचोईए-प्रचोदितः' प्रेरित ४२ 'अबले गय-अबलो गौः' हुमण यासता नथी, परंतु 'से-स' ते 'अप्पयामए-अल्पस्थामा' २०६५ सामथ्यापा 'अवले-अबलः' दुर्म मह 'अंतसो-अंतशः' भरण पर्यन्त ५ 'नाइवहइ-नातिवहति' सा२यन ४२ शतेो नथी परंतु 'विसीयइ-विषीदति' ६५ बजेरेमा इसाने से ભગવે છે. જે પ .
-:सूत्रार्थ:ગાડું હાંકનાર માણસ દ્વારા ગમે તેટલી મારપીટ આદિ કરવામાં આવે તે પણ દુર્બળ બળદ ચાલતો નથી. સામર્થ્યહીન અને નિર્બળ હોવાને કારણે તે મરણ પર્યત પણ ભારને વહન કરી શકવાને સમર્થ હેતે નથી, એ બળદ તે પિતાની કમજોરીને કારણે કાદવ આદિમાં ફસાઈને દુઃખી જ થાય છે. પાપા सु. ८१
શ્રી સૂત્ર કૃતાંગ સૂત્ર : ૧