Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutanga Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 678
________________ समथार्थ बोधिनी टीका प्र. . अ. २ उ. ३ साधूनां परिषहोपसर्गसहनोपदेशः ६६५ गृहेऽपि वसन् पुरुषो यदि देशयिरतिमंगीकृत्य सर्वप्राणिषु समताभावं कुर्वन् जिनोदितधर्माराधको भवति तदा स देवलोकमवश्यं गच्छतीति जिनप्रतिपादिताऽहिंसाया इदं फलं यत् गृहमायसन्नपि स्वर्गगामी भवति, देशविरतेरपि यदा ईदृशी गतिस्तदा सर्व विरतेस्तु का कथा॥१३॥ संप्रति सर्व विरतेमहिमानमाह 'सोच्चा' इत्यादि । मूलम् सोच्चा भगवाणुसासणं सच्चे तत्थ करेज्जुवकमं । १० १२ सवत्थ विणीयमच्छरे उंछ भिक्खु विसुद्धमाहरे ॥१४॥ छाया श्रुत्वा भगवदनुशासनं सत्ये तत्र कुर्यादुपक्रमम् । सर्वत्र विनीतमत्सर उञ्छं भिक्षुर्विशुद्धमाहरेत् ॥१४॥ जिनेन्द्र भगवान् द्वारा प्ररूपित धर्म की आराधना करता है तो अवश्य ही उसे देवलोक की प्राप्ति होती है । जिनप्रतिपादित अहिंसा का यह फल है कि गृहवास करने वाला भी स्वर्ग के सुखों का भोक्ता बन जाता है । जब देशविरति से भी एसी गति की प्राप्ति होती है तो सर्वविरति के फल का तो कहना ही क्या है ॥१३॥ अब सर्वविरति की महिमा कहते हैं-"सोच्चा” इत्यादि । शब्दार्थ-'भगवाणुसासणं-भगवदनुशासनम्' भगवान् के अनुशासन अर्थात् आगमको 'सोच्चा-श्रुत्या' सुनकर 'सच्चे-सत्ये' उस आगममें कहेगये सत्य 'तत्थ-तत्र' संघममें 'उबक्कम-उपक्रमम्' उधोग 'करेज्ज-कुर्यात करते रहें 'सव्यत्थ-सर्वत्र' प्राणिमात्रमें 'विणीयमच्छरे-विनीतमत्सरः' 'मत्सररहित होकर અંગીકાર કરીને અને સમસ્ત પ્રાણીઓ તરફ સમતા ભાવ ધારણ કરીને જિનેદ્ર ભગવાન દ્વારા પ્રરૂપિત ધર્મની આરાધના કરે તો તેને અવશ્ય દેવલોકની પ્રાપ્તિ થાય છે. જે દેશ વિરતિને અંગીકાર કરવાથી દેવગતિ રૂપે ફળની પ્રાપ્તિ થાય છે. તે સર્વવિરતિના ફળની તે વાત જ શી કરવી? એટલે કે સર્વવિરતિ દ્વારા મોક્ષની પ્રાપ્તિ થાય એમાં કઈ આશ્ચર્યની વાત નથી. ૧૩ ये सूत्रा२ सर्व वितिनो भडिमा १३ छ- "सेच्या" त्याह शहाथ -- 'भगवाणुसासण-भगवदनुशासनम्' मापानना अनुशासन मर्थात सामने सोचा-श्रुत्वा'aicut सन्चे सत्ये ते सायमन अन्य तत्थ-त' सयममा ‘उवक्कम-उपक्रमम्' धो करेज-कुर्यात्' ४२ता रहे 'सम्वत्थ-सर्वत्र' प्रालि શ્રી સૂત્ર કૃતાંગ સૂત્રઃ ૧

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