Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutanga Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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सूत्रकृताङ्गसूत्रे
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छाया सर्व स्वकर्मकल्पिता अव्यक्तेन दुःखेन प्राणिनः । हिण्डन्ति भयाकुलाः शठा जातिजरामरणैरभिद्रुताः॥१८॥
अन्वयार्थ-- (सव्ये पाणिणो) सर्वे त्रसस्थापराः प्राणिनो जीवाः, (सयकम्मकप्पिया)स्वककर्मकल्पिताः, स्वकृतेन ज्ञानावरणीयादिना कर्मणा कल्पिताः सूक्ष्मवादरपर्याप्तकापर्याप्तकैकेन्द्रियभेदेन व्यवस्थिताः (अवियत्तेण दुहेण) अव्यक्तेन दुःखेन अपरिस्फुटेन शूलाद्यलक्षितस्वभावेन व्यक्तेन च दुःखेनासातावेदनीयस्वभावेन (जाइजरामरणेहि) जातिजरामरणैः जाति-जन्म जरा-वर्द्धक्यं मरणं-शरीरत्यागः, एभिः (अभिदुता) अभिद्रुताः पीडिताःसन्तः(भयाउला)भयाकुलाः (सढा) शठाः= शठकर्मकारित्वात् (हिंडंति) हिण्डन्ति परिभ्रमति तत्तद्योनौ घटीयंत्रन्यायेनेति ॥१८॥
शब्दार्थ-'सव्वे पाणिणो--सर्व प्राणिनः' सब त्रस स्थावर प्राणी 'सयकम्मकप्पिया--स्वकर्मकल्पिताः' अपने अपने कर्मों से नाना अवस्थाओं से युक्त हैं 'अवियत्तेण दुहेण--अव्यक्तेन दुःखेन' और सब अव्यक्त--अलक्षित--दुःख से दुःखी है 'जाइजरामरणेहि--जातिजरामरणः' जन्म-जरा-बाईकय और मरण से 'अभिदुता--अभिद्रुताः' पीडित 'भयाउला--भयाकुलाः' और भय से आकुल 'सढा--शठाः' शठजीव 'हिंडंति--हिण्डन्ति बार बार संसार चक्र में भ्रमण करते हैं।॥१८॥
अन्वयार्थ त्रस और स्थावर सभी प्राणी अपने द्वारा उपार्जित ज्ञानावरणीय आदि कर्मों से सूक्ष्म बादर, पर्याप्त अपर्याप्त एकेन्द्रिय आदि के भेद में रहे हुये अव्यक्त तथा व्यक्त दुःख से एवं जन्म जरा मरण के द्वारा पीडित होकर शठतापूर्ण कर्म करने के कारण घटीयंत्र की तरह भ्रमण करते हैं ॥१८
शहाथ-- 'सव्वे पाणिणो-सवे प्राणिनः ' चा त्रस स्था५२ प्राणी 'सयकम्मकप्पिया-स्वकर्म कल्पिता' पातपाताना थी भने प्रा२नी अवस्थामाथी युक्त छे. 'अवियत्तेण दुहेण-अव्यक्तेन दुःखेन' मने या ४ सव्यत--सक्षित हुथी भी छ 'जाइजरामरणेहि-जातिजरामरणैः' म ४२॥ पाद्धय मने भरथी 'अभिवृत्ताअभिद्रुताः' पीडित 'भयाउला भयाकुला' भने मयथी माणसढा-शठाः' श304 'हिउंति-हिण्डन्ति' चार यार संसारयमा भ्रम ४२ छ. ॥ १८ ॥
સૂત્રાર્થ ત્રસ, સ્થાવર આદિ સમસ્ત જીવે પોતપોતાના દ્વારા ઉપાર્જિત જ્ઞાનાવરણીય આદિ કમેને કારણે સૂકમ, બાદર, પર્યાપ્ત, અપર્યાપ્ત એકેન્દ્રિય આદિ ભેદો રૂપે રહેલા છે. તેઓ અવ્યકત તથા વ્યક્ત દુ:ખથી અને જન્મ, જરા અને મરણના દુઃખથી યુક્ત છે. શક્તા પૂર્વક કર્મ કરવાને કારણે તેઓ રહેટની જેમ સંસારમાં ભ્રમણ કરતા રહે છે. ૧૮
શ્રી સૂત્ર કૃતાંગ સૂત્ર: ૧