Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutanga Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 692
________________ सूत्रकृताङ्गसूत्रे अन्वयार्थ ( इणमेव ) इममेव = इमं द्रव्यक्षेत्र कालभावलक्षणं (खणं) क्षणम् अवसरं, तथा (बोहिं) बोधिं सम्यक्त्वं च (णो सुलभ ) नो सुलभाम् (आहियं) आख्याताम् सर्वज्ञैः कथिताम् (पिजाणिया) विज्ञाय (सहिए ) सहित: = हितेन ज्ञानदर्शनचारित्रेण युक्तः सन् ( एप ) एवमनेन प्रकारेण ( अहिपासए) अधिपश्येत् -विचारयेदित्यर्थः ( जिणे ) जिनः ऋषभदेव : ( आह) कथितवान् (सेसगा) शेषका :- अन्येपि ( इणमेव ) इदमेव आहुरिति ॥ १९ ॥ टीका ६७९ 'इणमेव, इममेव 'खणं' क्षणम् अवसरम् द्रव्य-क्षेत्र - काल - भाव स्वरूपमनुकूलं कर्मनिर्जराकारकमवसरं विज्ञाय अवसरोचितं कर्त्तव्यम्, तथाहि द्रव्यं शब्दार्थ - 'इणमेव - इममेव' यही 'खणं - क्षणम्' अवसर है ऐसा तथा 'बोहिबोधिम्' सम्यक्त्व भी 'णो सुलहं-नो सुलभाम्' सुलभ नहीं है, ऐसा 'आहियंआख्याताम्' सर्वज्ञों ने कहा है ऐसा 'विजाणिया - विज्ञाय ' जानकर 'सहिए -- सहित: ' ज्ञान दर्शन और चारित्र से युक्त होकर ' एवं - - एवम्' इस प्रकार 'अहिपासए - अधिपश्येत्' विचार करे, 'जिणे -जिनः' श्री ऋषभ जिनेश्वरने 'आह - आह' कहा है 'सेसगा -शेषका: ' और शेष तीर्थकरों ने भी 'इणमेव इदमेव' यह कथन किया है ॥१९॥ अन्वयार्थ द्रव्य, क्षेत्र, काल और भावरूप ग्रह अवसर, तथा सर्वज्ञों द्वारा सम्यकत्व सुलभ नहीं है इसे जानकर ज्ञानदर्शन और चारित्र तप से सम्पन्न होकर इस प्रकार विचार करे । यह ऋषम देव ने कहा है और अन्य तीर्थकरों ने भी कहा है ||१९|| शब्दार्थ - 'इणमेव - इममेव' २४ 'खणं - क्षणम्' अवसर है तथा 'बोहिं बोधिम्' सभ्यत्य पशु 'णो सुलह-नो सुलभाम्' सुवल नथी, मेवु' 'अहियं - आख्याताम्' सर्पજ્ઞાએ કહેલ g विजाणिया-विज्ञाय भगाने 'सहिए - सहित:' ज्ञान दर्शन ने यारित्रथी युक्त थाने 'एवं - एवम्' अरे 'अहिपासए - अधिपश्येत्' विचार पुरे 'जिणे - जिन' श्री ऋषल निनेश्वरे 'आह-आह' उस छे 'सेलगा-शेषकाः' भने शेष तीर्थ उसे पशु 'इणमेव इदमेव' मा ०४ अथन् यु छे. ॥१७॥ - सूत्रार्थ દ્રવ્ય ક્ષેત્ર, કાળ અને ભાવ રૂપ આ અવસર તથા સર્વજ્ઞા દ્વારા કથિત સમ્યક્ત્વ સુલભ નથી, એવું જાણીને જ્ઞાનદર્શન અને ચારિત્રથી સપન્ન ખન્ના, ભગવાન ઋષભદેવે પણ આ પ્રમાણે કહ્યુ છે અને અન્ય તીથ કરાએ પણ આ પ્રમાણે ફરમાવ્યું છે. ૧૧૯૫ શ્રી સૂત્ર કૃતાંગ સૂત્ર : ૧

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