Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutanga Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
View full book text
________________
६७०
सूत्रकृताङ्गसूत्रे श्रयेत् । तथा धर्मार्थी तपसि स्वपराक्रमं प्रदर्शयेत् । एवं मनोवचनकायैर्गप्तो ज्ञानादियुक्तश्च स्वात्मपरात्मनोः प्रयतमानो मोक्षमभिलषेदिति भावः ॥१५।। पुनरपि उपदेशान्तरं ब्रूते सूत्रकारः–'वित्तं' इत्यादि ।
मूलम्वित्तं पसवो य नाइओ तं बाले सरणंति मन्नइ ।
૧૧ ૧૨ ૧૪ ૧૩ ૧૪ ૧૫ ૧૬ ૧૭ एते मम तेसु वि अहं नो ताणं सरणं न विज्जई ॥१६॥
छाया--
वित्तं पशवश्च ज्ञातयः तान्बालः शरणमिति मन्यते ।
एते मम तेष्वप्यहं नो त्राणं शरणं न विद्यते ॥१६। होकर तपस्या में पराक्रम करे । इस प्रकार मन वचन और काय से गुप्त होकर तथा ज्ञान आदि से युक्त होकर यतना करता हुआ मोक्ष की अभिलाषा करे ॥१५॥
सूत्रकार पुनः उपदेश करते हैं -“वित्त', इत्यादि ।
शब्दार्थ-'बाले-बालः' अज्ञानी जीव 'वित्त-वित्तम्' धनधान्यहिरण्यादि 'य-च' और 'पसवो-पशवः पशु 'नाइओ-ज्ञातयः' तथा ज्ञातिजन 'ते-तत्' इन्हें 'सरणंति-शरणमिति अपनी शरण 'मन्नइ-मन्यते' मानता है 'एते-एते ये सब 'मम-मम' मेरे हैं तथा 'तेसु वि-तेष्वपि धनादिमें 'अहं-अहम्' मैं इन का स्वामीहूं ऐसा अज्ञानी जन मानते हैं परंतु ये सब 'नो ताण-नो त्राणम्' त्राणकारक नहीं है एवं 'सरण-शरणम्' शरणरूप 'न विज्जई-न विद्यते' नहीं है ॥१६॥ કાય ગુપ્તિથી યુક્ત થઈને અને જ્ઞાનાદિથી સંપન્ન થઈને યતનાપૂર્વક વિચરતા થકા મેક્ષની જ અભિલાષા કરવી જોઈએ. એ ગાથા ૧પ
2010 पहेश मापता सूत्रा२ ४ छ - "वित्त” त्याह
शहा- 'बाले-बालः' मसानी ७१ 'वित्त-वित्तम्' धनधान्य डि२९य वगेरे 'य-च' मने 'पसबो-पशवः' पशु 'नाई मओ-ज्ञातयः' तथा शातिन 'ते-तत्' भने 'सरण ति शरणमिति' पातानु श२९ 'मन्नइ-मन्यते' भान छ 'एते-एते' मा ५i 'मम-मम' मा छे तथा 'तेसु वि-तेष्वपि धन पोरे वस्तुन। 'अह-अहम्' हु स्वाभी छु मे २मज्ञानी माणुस माने थे, परंतु २मा मधु 'नो ताण-नो त्राणम्' त्रा४।२४ नथी मेवम् ‘सरणम्-शरण' १२९५३५ 'न विजई-न विद्यते' नथी. ॥ १६ ॥
શ્રી સૂત્ર કૃતાંગ સૂત્ર : ૧