Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutanga Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 671
________________ ६५८ सूत्रकारः - 'अदक्खुव' इत्यादि । २ मूलम् - १ ४ अदक्खुव दक्खुवाहियं सहसु अदवखुदंसणा | सूत्रकृताङ्गसूत्रे ७ हंदि हु सुनिरुद्धदंसणे मोह णिज्जेण कडेण कम्मुणा ॥ ११॥ छाया अपश्यवत् पश्यव्याहृतं श्रद्धत्स्व अपश्यदर्शन | गृहाण सुनिरुद्धदर्शन: मोहनीयेन कृतेन कर्मणा ॥ ११ ॥ अन्ययार्थः (अदक्खुव) अपश्यत् पश्यतीति पग्यो न पश्योऽपश्योऽन्धः तद्वत् तत्सदृश ! इस प्रकार इस लोक संबंधी सुख के ही अभिलाषी और पारलौकिक सुख का तिरस्कार करने वाले नास्तिक के कथन का उत्तर सूत्रकार ग्यारहवीं गाथा में देते हैं- “ अदक्खुव" इत्यादि । शब्दार्थ - 'अदक्खु व - अपश्यवत्' हे अन्धे के समान पुरुष ' ' दक्खुवाहियं - पश्यव्याहृतम्' सर्वज्ञके कहे हुए आगमों में 'सहनु - श्रद्धस्व' श्रद्धा करो 'अदक्खुदंसणा - अपश्यदर्शन' हे सर्वज्ञ दर्शन वाले ! 'मोहणिज्जेण- मोहनीयेन' मोहनीय ' कडेण - कृतेन' स्वयं किये हुए 'कम्मुणा - कर्मणा' कर्म से सुनिरुद्ध दंसणे - मुनिरुद्धदर्शन: ' जिनकी ज्ञान दृष्टि नष्ट होगई है वह सर्वज्ञोक्त आगमों को नहीं मानता है 'हंदि हु - जानीहि ' ऐसा निश्रय जानो ॥ ११॥ -अन्वयार्थ हे अपश्यत् अर्थात् अन्धे के समान सर्वज्ञकथित आगम पर श्रद्धा આ પ્રકારના આ લેાકના સુખની અભિલાષાવાળા અને પારલૌકિક સુખના તિરસ્કાર કરનારા નાસ્તિકાના કથનનેા ૧૧મી ગાથામાં સૂત્રકાર આ પ્રમાણે ઉત્તર આપે છે “अदकखुव” धत्याहि शब्दार्थ -- 'अ क्खुव - अपश्यवत्' डे ! सांधणाना समान ३ष ! 'खुवाहियपश्याहृतम्' सर्वज्ञये डेस भागभोभां 'सद्दहसु श्रद्धत्स्व' श्रद्धा राणो अदक्खु दंसणा - अपश्यदर्शन' हे ! सर्वज्ञ दर्शनपाणाओ ! 'मोहपिज्जे ग- मोहनीयेन' मोडनीय 'कडेण-कृतेन' पोते उरेस 'कम्मुणा-कर्मणा' उर्भथी 'सुनिरुद्धद सणे - सुनिरुद्धदर्शनः' प्रेमनी ज्ञानदृष्टि नष्ट थ ग ते सर्वज्ञो भागभीने मानतो नथी ''दिहुजानीहि ' मेषु निश्चित लगे. ॥११॥ સૂત્રા હે અપણ્યવત્ ! (આંધળા સમાન પુરુષ !) સર્વજ્ઞ દ્વારા કથિત આગમ પર શ્રદ્ધા શ્રી સૂત્ર કૃતાંગ સૂત્ર : ૧

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