Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutanga Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 665
________________ ६५२ सूत्रकृताङ्गसूत्र एतादृशीमबस्थां संपश्यन्तोऽपि क्षुद्रमनुजा विषयभोगेषु आसक्ता भूत्वा नरकादियातनास्थानं लभन्ते इति भावः ॥८॥ मूलम् जे इह आरंभनिस्सिया आत्तदंडा एगंतलूसगा। गंता ते पावलोगयं चिररायं आसुरियं दिसं॥९॥ छाया य इह आरंभनिश्रिता आत्मदण्डा एकान्तलूषकाः । गन्तारस्ते पापलोककं चिररात्रमासुरिकां दिशम् ॥९॥ कालीन निवास जैसी ही है । आयु की ऐसी दशा देखते हुए भी जो जीव क्षुद्र हैं वेही विषयभोगों में आसक्त होकर नरक आदि यातना स्थानों को प्राप्त करते हैं ॥८॥ शब्दार्थ-'इह-इह' इस लोकमें 'जे-ये' जो मनुष्य 'आरंभनिस्सिया-आरम्भनिश्रिताः' हिंसादि सावध अनुष्ठानों में आसक्त हैं 'आत्तदंडा-आत्मदण्डाः' आत्माको दंड देनेवाले 'एगंतलूसगा-एकान्तलूपकाः, और एकान्तरूपसे प्राणि यों के घातक हैं 'ते-ते' वे पुरुष 'पावलोयं-पापलोकम्' पापलोक अर्थात् नरकमें 'चिररायं-चिररात्रम्' बहुतकाल पर्यन्त 'गंता-गन्तारः' जाने वाले होते हैं और 'आसुरियं दिसं-आसुरी दिशम्' आसुरी दिशामें जाते हैं अर्थात् देवाधम होते हैं ॥९॥ (જીવનને) અલ્પકાલીન નિવાસ સમાન સમજીને માણસે સંયમમાં પ્રવૃત્ત થવું જોઈએ અને ચિન્તામણિ જેવા મનુષ્ય જીવનને સાર્થક કરવું જોઈએ. પરંતુ આયુની આવી દશા દેખવા છતાં પણ ક્ષુદ્ર જી વિષયોમાં આસક્ત થઈને આ મહામૂલા માનવ જીવનને વ્યર્થ ગુમાવી બેસીને નરકાદિ યાતના સ્થાનમાં ઉત્પન્ન થઈને અસહ્ય દુઃખનું વેદન કરે છે. એ ગાથા ૮ છે शम्हा-'इह-इह' २सोमा 'जे-ये' मनुष्य 'आर भनिस्सिया-आरम्भनिश्रिताः' सा मेरे सावध अनुष्ठानामा सासरत छ ‘आत्तदंडा-आत्मदण्डाः' यात्मान ६देवावा॥ 'एग तलूसगा एकान्तलूषकाः' भने सान्त३५थी प्रालियाना घात छ 'ते-ते' ते ५३५ 'पायलोय-पापलोकम्' पपस मर्थात् नभा 'विरराय-चिररात्रम्' घ। समय ५ त 'गता-गन्तारः' या डाय छे 'आसुरिय दिस-आसुरी दिशम्' અથવા આસુરી દિશામાં જાય છે અર્થાત્ દેવાધમ થાય છે. 1 ૯ શ્રી સૂત્ર કૃતાંગ સૂત્ર: ૧

Loading...

Page Navigation
1 ... 663 664 665 666 667 668 669 670 671 672 673 674 675 676 677 678 679 680 681 682 683 684 685 686 687 688 689 690 691 692 693 694 695 696 697 698 699 700 701 702 703 704 705 706 707 708 709