Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutanga Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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सूत्रकृताङ्ग सूत्रे अन्वयार्थः(इह) इहास्मिन् लोके (वणिएहिं) वणिग्भिः (आहियं) आहितं = देशान्तरादानीतं (अग्गं) अयं प्रशस्तं रत्नादिकं (राईणिया) राजानः (धारंति) धारयति विभ्रति (एवं) एवमनेन प्रकारेण (अक्खाया) आख्यातानि-तीर्थकरद्वारा प्रतिपादितानि (सराइभोयणा) सरात्रिभोजनानि = रात्रिभोजनपरित्यागयुक्तानि (परमा) परमाणि उत्कृष्टानि (महब्धया) महाप्रतानि आणातिपातविरमणादीनि, महापुरुषा भाग्यवन्तएव धारयति॥३॥
और भी उपदेश करते हैं--'अग्ग वणिएहि” इत्यादि ।
शब्दार्थ-'इहं-इह इसलोक में वणिएहि-वणिग्भिः ' बनियों के द्वारा 'आहियं-आहितम्' दूर देशसे लाए हुए 'अग्गं-अग्यम्' उत्तमोत्तम वस्तुओं को 'राइणिया-राजानः' राजा महाराजा आदि 'धारंति-धारयन्ति' धारण करते हैं 'एवं-एवम् इसीप्रकार 'अक्खाया-आख्यातानि' आचार्य के द्वारा प्रतिपादित 'सराइभोयणा-सरात्रिभोजनानि' रात्रि भोजन के परित्याग सहित ‘परमा -परमाणि' उत्कृष्ट 'महव्यया-महाव्रतानि' प्राणातिपातविरमण आदि महाव्रतों को साधु पुरुष धारण करते हैं ॥३॥
- अन्वयार्थ - जैसे व्यापारियों द्वारा देशान्तर से लाये हुए उत्तम रत्न आदि को यहां राजा लोग धारण करते हैं, इसी प्रकार तीर्थकर द्वारा प्रतिपादित रात्रि भोजनविरमणसहितप्राणातिपातविरमण आदि महाव्रता को महापुरुष भाग्यवन्त ही धारण करते हैं ॥३॥
4जी सूत्र॥२ पटेश मा छ -" अग वणिएहि" त्याह
शहाथ 'इह-इह' सभा 'वणिपहि-वणिग्भिः' पनि द्वारा 'आहियआहितमू ६२ देशथी सास 'अग्ग-अश्यम्' उत्तमोत्तम वस्तुमाने 'राइणिया-राजानः' रात मडरान वगेरे 'धारति-धारयन्ति धा२४ ४२ छे एवं-एवमू' या अरे 'अक्खायाआख्यातानि' मायाना द्वारा प्रातहत 'सराइभोयणा-सरात्रिभोजनानि' रात्रि मानना परित्यागनी साथ 'परमा-परमाणि' पृष्ट 'महव्यया-महाव्रतानि' प्रतिपात વિરમણ વગેરે મહાવ્રતોને સાધુપુરૂષ ધારણ કરે છે. ૩
-सूत्राथ:જેવી રીતે વ્યાપારીઓ દ્વારા પરદેશમાંથી લાવવામાં આવેલાં ઉત્તમ રત્ન આદિકને રાજાએ ધારણ કરે છે, એ જ પ્રમાણે તીર્થકર દ્વારા પ્રતિપાદિત રાત્રિ ભેજનવિરમણ સહિત પ્રાણાતિપાત વિરમણ આદિ મહાવ્રતને ભાગ્યશાળી પુરુષો જ ધારણ કરે છે. આવા
શ્રી સૂત્ર કૃતાંગ સૂત્રઃ ૧