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द्विवेदी-युग की पृष्ठभूमि एवं परिस्थितियां [ ३ "इस युग-विशेष में सुधारों का जोर रहा। द्विवेदीजी भी भाषा के साथ जीवन के अन्य क्षेत्रों में सुधार कर मर्यादा की स्थापना करना चाहते थे। उनपर आर्यसमाज का सुधारवाद हावी रहा । राष्ट्रीय क्षेत्र में तिलक का प्रभाव इसके उत्तराद्ध मे रहा। इसलिए राष्ट्रीय काव्य पर पड़नेवाले प्रभाव की दृष्टि से इस युग का नामकरण *दयानन्द-युग' अथवा 'तिलक-युग' किया जा सकता है, लेकिन हिन्दी-साहिन्तिान में प्रचलित 'द्विवेदी-युग' नाम ही यहाँ गृहीत है।"१
डाँ० पाठक ने द्विवेदी-युग की काल-सीमा सन् १९०१ से १९१९ ई० तक मानी है । दूसरी ओर, डॉ० गानिवन्त्रत ने काव्य-परम्पराओं एवं मूल आदर्शों की दृष्टि से द्विवेदी-युग को भारतेन्दु-युग से अभिन्न भाना है। उन्होने द्विवेदीकालीन सम्पूर्ण काव्य-सभ्यता को भारतेन्दु-युग से ही प्रारम्भ हुई 'आदर्शवादी काव्य-परम्परा' के खाते में डाल दिया है और लिखा है :
"काव्य-परम्पराओं की दृष्टि से यह युग पूर्ववर्ती युग से अविभाज्य है, पूर्ववर्ती युग की ही परम्पराओं और प्रवृत्तियों का विकास इस युग में हुआ है। परिवर्तन केवल दो क्षेत्रों मे हुआ-एक तो नेतृत्व में और दूसरे, रचना-पद्धति एवं काव्यभाषा में। अब भारतेन्दु का स्थान महावीरप्रसाद द्विवेदी ने ग्रहण कर लिया तथा उनके प्रभाव तथा प्रयास से मुक्तक शैली के स्थान पर प्रबन्धात्मकता की तथा ब्रजभाषा के स्थान पर खड़ी बोली की प्रतिष्ठा हुई।"२
डॉ० गणपतिचन्द्र गुप्त का यह कथन द्विवेदी-युग की काव्यगत उपलब्धियों पर आधृत है, गद्य-सम्बन्धी गवेषणाओं की ओर इसमें ध्यान नहीं दिया गया है। अतएव, इस विभाजन को सर्वा गपूर्ण नही माना जा सकता । द्विवेदी-युग के नामकरण एवं काल-विभाजन को सर्वाधिक विस्तार डॉ० श्रीकृष्ण लाल ने दिया है। उन्होंने सन् १९०० से १९२५ ई० तक की अवधि को 'द्विवेदी-युग' के अन्तर्गत माना है। इस युग की साहित्यिक विशिष्टताओं की चर्चा करते हुए लिखते है : ____"बीसवीं शताब्दी के प्रथम चतुर्थाश में हिन्दी-साहित्य का विकास प्रयोग से प्रारम्भ होकर निश्चित सिद्धान्तों की ओर, प्राचीन संस्कृत-साहित्य के प्रतिवर्तन (रिवाइवल) से पाश्चात्त्य साहित्य के अनुकरण और रूपान्तर की ओर; मुक्तक और प्रबन्धकाव्यों से गीतिकाव्यों की ओर; इतिवृत्तात्मक और असमर्थ कविता से प्रभावशाली और भावपूर्ण कविता की ओर; करुणा, वीर और प्रकृति-वर्णन के सहजोद्रेक भावों से प्रारम्भ १. डॉ. जितराम पाठक : 'राष्ट्रीयता की पृष्ठभूमि में आधुनिक काव्य का
विकास', पृ० १५३ । २. डॉ० गणपतिचन्द्र गुप्त : 'हिन्दी-साहित्य का वैज्ञानिक इतिहास', पृ० ६३७ ।