Book Title: Acharanga Sutra
Author(s): Sudharmaswami, Mayachand Matthen
Publisher: Vikramnagar
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एनरोगीयणातनिजप्राययानपरिवेशलाक कलवादिकमाणसण सरणसणीसमर्थनथाई उपपितेनिजआपणाननाणसरणसणी आगलितनार्मवादवानाअखबाकदाचिश्म ना
समर्थनहीपदबागीफ करिव याइतपुर आचारंग यागाधियरिचयतिसादप्तिास्मिटागोएलायरिवाछा पालतेतानाशाएवासरणाएवापिसेसिंमानताएदा।। २८ स्लाजाणि पदवीजाणि सपनऽषपत्पकरबनने रोगिऊपने करवनाणिवी।परएकजीवामनकरैतेकदेबीलोन काकजीवपणे अव हिवैलोगोषनिकारणवानतेदनौरव वस्फ॥ सगलाई जीवापणाकीमा स्वाईपसाबसालोगेवजशाचशाहवासागकाम्पानसमकनेतोगतिमामारदेव रूपकदैवविविधप्रकारश्करीजेते | कर्मसागवतमजीपी अध्यवसायएककिणिमनुष्यनेयाज्ञा
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निपुण एकदा अंतरायनउदय
सायनकाजिनावशतेमपरिक अण्णावा बजगावा सतत्व गठिण विधति सोटाए तसे/एगया विमरिमिसंसथ मदोवाराणसतिपिसेएगया दायादागोत्रीविदची चोरअपदर॥ राजाद डीनरल्य॥ श्रीफाशीनाऽ॥ अमवाविणस॥ अथवाघरण दाट्श्व दायादाविसति अदनादारावास अवदरतिरायाणावासेवियति मस्सश्वासविणस्सश्वास अगाक्षिणवा
इणिपरि तेपरमश्अर्थश्व के कर कर्म वातअज्ञात करत तिलभरकरमटया बानिमाजमाणबोदि वैतोगनोफलज्या सेडति इतिसेयरस्स हा झराणि कम्माणि बालापनमाण तिराहारकामटेविपरियास मुवेति या
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