Book Title: Acharanga Sutra
Author(s): Sudharmaswami, Mayachand Matthen
Publisher: Vikramnagar

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Page 84
________________ विषा प्लासका पानतपन्नमम० नीकलवान उति | जगानं मगनामा शीतवात कंपन कुमारादिवेदन रदाकर्मणमोटन संजनरूपनिक वासन पाम॥ उपवसहता ई सेनि० स्थानक मधीन इन ही टोल हक भी उपमा एकतारीक मीजी वाकवचनी चलन विपना धर्म रिवायोग्पादादिक विषयनविष कुरा सावार्थ थांबतो शारीरमानसी दिऽबरेऽखिया राजादि उपद्रव अपव्यानि कि मिदादा दितथा माध राज्य |२९| विविधवित्र । यबन्न पसास | अम्मी सरणाध्वसति | तेजगा| इसणिदि से रणावयति । एवंशग ऋणागे रुवे ! नौमारवा करता समस्त रख्नौ दीनला करे होतात मात ९वा बतातेषामाजीवनिः कर्मबलकी मो हतेऽषथकी लुटेन दीसिहांईज पोऽष लोगवे ९६वी सावजी शिव आचारण्यवासन करते देवएवेतोग संयोग नै अवसरमा बुटि पाइजोको थारूपादिविषयास हिवेनानाप्रकारव्याधिमधा संसारमा हिजलीजि अश्कता अनेकाम ॥ कन९ व रोगादिकट को जीवतेरुमा कमवियाकने ३२६ नरकादितिष मंत्र का दिवै पासलकरुते व्यत्पा दिदीनपत कर ॥ ततानकदी नम्वर के कर कर्मकीलितेविषयक दुती पाक में लोग विनासली जातीक हाती ऊपना जेई हूं। कालहिं | जाया | रुावहिं | मन्त्रा (क खुशध गति | निदारात तणाव संति। मारके पामात हिं। कालदि। मात्रा कर्म अपनाते हुने प्रवचनोगते हैगी वातपितले मासं निपातना ऊपनी चिऊं से देते मानता दोष थाइते रुथ की कपगलोटो एकल । ३० उदगो हुनाले दतेदमा दि कहवा ते द्योतक माला वाटते कि शाराय० रुपये बोअथवा एक हाथ उन पतेक रोगी की लोदरमात्र माया साध्य कि गाउयत इत्यर्थः श्ररोगविवेक विकलेत्रम किस्तायाम् । तथा का• काप तु ० ॐ २१० मातापितातिनातिविचित्रताब शेषले दुसाध्य प्रकार एक गतनार्थवाजन्मपाम्पाप तथा किमियनांजापन सर्वशरीर, उषधकी रोग तथा ॥ ॥२॥ इ॥पास देबि शिष्यप्रतिकथन श्रवयवमवस्थाइ ॥ तथा तस्य मूकमा मलउ कर्मवशि एजायागं मी वा काही रायसी मारिये । कालियं किमियं वर / ऊणित खुजितं तदा || || उयरिया सम् जीवनेर हवी रोगथावदोषास जोफिदा रहो रोगी थाइते हाथ का मिलि श्रीपद रोगवेदन प्रसाविपरारिवि प्रमेहापरते सर्व मिलिया साध्यावस्वाईमक मे हम लैपऊ निरुध की सर्व रोग गि० सम्म टनी पाटलीही अतिकृतिलोथाइत्थामम च सोल० इलरिए सोलरोग विशेषजेस काळजी व पाल्पा कुनामव्यामविशेषमाही अन्यथा वालीनसकै कसरी जेन उते मऊ महल · अनुक्रम कसाथ दिन आतंकरोग विशे उत्कृष्ट पले उपजे देवविशेषशरीरावयवदाताकहवाइ हवाद। \\२ बजे तत्काल जीवन व्यतव्यनै घातक भूलादिकजी शिवा के पिता पीठसप्पै आली ग शेष येवरणिय व विगला सविनयं पीठ सप्पि | सिलिवत्तिमऊ मऊ लिया ||२||सा उस रात ारागारकाया। 12

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