Book Title: Acharanga Sutra
Author(s): Sudharmaswami, Mayachand Matthen
Publisher: Vikramnagar

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Page 101
________________ श्राचारंग पर कक्षा अंतरं ते पासखादिक सामधासी बता लोक्माग लिविहार आरामाचा दिनकरिव विदेश शिकार पतीन केश्वर्मक सजीवतास्वयं तथानरापाह हाती तान अलुमोदता श्रवेो ॥ तपारक अव्यपरसा की अबी ताप । जेल लीबी तराय अकल्पनीय दस्त सानायुक्त का ते सात जमले पहार के दइ ॥ इदानी | वयमाग गया। घाटामा रण। दाता या विसम राजा रामा सेवा दिलमा दितेति ॥ थाना नाकाक्वनपरद | स्वावरजंगमरूप लोक ते केवोनवर वेगमेदिनी सात दीपन सातसती लोक नथीमक तथा कमक है चाबी का दिक लोकन निमिबोल्तेक बीजक सर्वाख प्रदर्शनसरी उवजी वनश्री पुष्पपाप न थी इत्यादि एक संख्या विक इमक है। मुव० लोक नित्य बाबानी उत्पति इमक दइ ॥ नही बताना विनाशन भी जिलोकनउत्पत्ति विनाइले जिवार इश्क याइनिवार लोकर म क द अपने उ जिवार 5 दी मन ही तिबार विव मन लोक उत्पाद विभात्रा नथी सवै दाई एक शाक्यादिश्मक० लोक अनि सवतिविशारा जिथा | एक दोनीमक सादि९० लोकनी दिलाए कश्म का दिन धी० ॥ वाया विद्याज्जति ॥ तंऊदा चिलाए| गत्रिशलाए । शवालाय वालाए | सादिए||लाए| णादिए। सप्० लोकमत वैश्य कालि सर्व लाभ विनाशते। सुकमेव की सर्व संग रियाग करीम हातचा दामनरावजी इम कन् ॥ पा० एपापी जेजेल इपांमीन इव इति कारगिलोक से एक इमक दालोका की जेबा स्त्री ग् लो चैना मृग अत्र विना मुं की। कला० तथा एक ननिव्हा श्रमपलिया सम नथी । इत्यादिपरमार्थ जाता लोकनिमिताना मक एटीमा ग्रहण रूपभर्मक स्याब एक मकद बिक्वनश्युजइतावलीमा कर5 तकिम विवाद ताज लास पावसितालाए| पावसितालाए| सुकडे सिवा दुक्काडसिवा कन्नाशाशिवा | पारवत्त्रिया | साक्षशिवा | मिलजेएश्वेत्ति तो का दिकाता श्री बिम० नानाप्रकारमति पम्पा बसाइम विवाद करते रम विवादलामा हर धर्म लिपरिमाप ३२५ सता स्वयं माथि की स्रष्टथा याने रान करतायता ९६वे वचने करीमुलोकन वितरक हरबर ॥॥॥ 摘 चस्प गतिनी स्ति । इतिवचनात्र तयारकरमक है ० साकए कश्मक है रामाका तथा सिहि। तथा सिद्दितथा नरकइत्यादिमा पल काय दिपम्पा अनि कप रविवादेकर इतेक देवइज 42 | सात्त्रिवा। सिवी शिवा प्रसिवी शिवा । गिरन्त्रिदा । प्रतिरत्तिवा | जमिविय्यमिवन्ना | मामगंधम्म) पन्नाव माणा | ए

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