Book Title: Acharanga Sutra
Author(s): Sudharmaswami, Mayachand Matthen
Publisher: Vikramnagar

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Page 132
________________ इतवारस्वा मी धिकरी स्कं पुशान बाल तथा बोजान कोई उपसर्यकर573 की भकते) प्राचार्य देसा दिविष विस्तारुषादिककरी स्वामीनदार की तथा प रहितजीजूपाणी तापी माया ना केस लूं याणवीतरागाने की पानधी तथाश्री लयता फरु सा० का महाकठोर वाक्यमा परी सदनादिक इमजोन वाटा मारणा (दय प्रातदाहिं | ३ सिट बालहिं फसाइड तिरवाई। प्रति मुणी परक्कम मार प्रति बले उधरणा श्रा० यातही कोई महातार तरामायणादिक कथाकदतो तथा गदिवाकयादीस्तान किं जाता मा दोमा एवी स्त्री जनकामास तदेषी ते एाइ प्रस्ताविज्ञान पुत्र श्री महावीररुर्ष विवाद लोकयि नाटक गीत गंधर्व कन्ना पुतला उद्दिमीन 5 ला नाते सामु दिकथावाली कामोद्दीपक शृंगारा रतिमस्वपरावजी निराई उदारते टीम रिस्पोनोअक तथा मुटी युवा देषी विस्मयना दिकथा नेवान‍ विष६ ॥ कुलेपरी सदना कारणजासीदेषी ते स्मरतो रूत । एकाऽयविशश्रीवर्धमा अवधाति के पुल जीवन ही। एसर्व संसारस्वरूप कृतिम जी रकमूलत नयमने विषप्रा परतेपरी सद् ग्पारो नही कफ के तला श्वरजसवंत डबल ज्यारूपी मे दर गिरश्वम्पासंयमविषनिश् काल गीर दिये घाडगीता | दामुहिक || || गढिए मादा कदा सु | समय मिस्पाटय छात्र वियोगादरकु । एताई स्वामी बिगतमा विशलीभीत सिमाका दारकर तशा प्रक्श्रिीनगवंतविरसाधिके राज निपज्याप्रतिपल छायामा गातिथयाइमा एातिया वपरिहार करे! वरसन्न विमेन निरमाना पीतादिवंगत थाना बारश्रीमहावीरजति गीसीतोदकदानमा राम्रा बादादिक परिवस्यातिथ्य एत्रएकत्व सावसावती सोनामका मातापिता तवारित्र ही इतालो रीतिबा रवारित्राबाबत स्वामान ज्ञानोत्री मकाउ हामि एपी इतने पर रहवासिनिक परिवापत उही पडे कल जीतम वचन श्रीगत दिए कि परिखात देवा मामी दिनमा श्रीसिद्धार्थ राजा त्रिसनारावित्रीविराधना टाली ग तथापि क० को धनी झाला आबादी बजे ९६ वासगत उप चारित्रपर अष्टनारा さ विरबाईबजे सहितांगाडा एवानी कहती परमार्थनगर श्री महावीराति दो हिला कि एहीसहिजन कवोपरी राणीमपराक्रम कर 83 सम्प ही ककार सम्मान परिषनाथा ॥ मुकुन्दादरी सारालाई बतिपाटय पुत्र मरण १० वोहोरादि नक्रोष हाताल गवतादिसम्पत्क सावनासा बिसात या संते. शो ७०१थवी काव्याच्या अपकाया ति कस्तो दियोइडियेन परिभम्। रहवास गतमसा ते काया का वाकाय ॥ म्हारी विद्यासत्यागीतात ताराचारित्रक दिवा किस घातक व इमक दबाइ ॥ ११ ॥ विसादिण् डाववा वसे | सीता दगंलाञ्चापिरकांत | एगन्त | रणग० बीमा करन लोवर दिसतायता ऊतिलिक दवा तथाबी जात्यादक हरी काय पवनस्पतीस लागवी जगमा हिज करीए लोक कदवार प्रवीन तथा ॥ नने निमतिमा‍ विदियचे। सञ्चादिलाय दंसणसात ||१२||७४ विंका तिवायंचवा उक्कायंच | परागा यबीयदरि सउजोतिदेव नितलकाड तिवार लगतच्या उदी का व सरजीएगी संसार उसार पण लावना संयमनी पर यदि वा सिर ३७५ तिपन्त संयम नोक दिन किस उत्तेकरे તેની કણીની

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