Book Title: Acharanga Sutra Author(s): Sudharmaswami, Mayachand Matthen Publisher: Vikramnagar View full book textPage 1
________________ ॥ श्राचारंग ॥ १ सूत्रबी ॥ तुजे हनै विस श्री धर्मस्वामिति शाईलगत इश्री महावीरदेव । इति संसारमा दिएका ज्ञानावर नेल इमक चिरंजीवीए शमका अत किस ॥ मंत्रक बोल्पामा सांस ल्प। C ॥ यामया सेतिएंगे|] लगवया एवम स्कायं । इदमाग सिनोसन्ना लदई।। तंज || २चिमाउदा दिसाऊ । श्रागउदमं अथवा दाददिर दिसघकी के पश्चिमदीसका श्राव्याऊं वादले दिसा० उतरा दिसथ की वो नौकारणदेवासि । दाहिणा वा । दिसा | जय अथवा ऊईदिशि की मान्य लिसिज पूर्वा નીમુનભિવિરિ सिनो आगमन) पूर्व नव हकिएक जोगाइ सदस्म मी० इत्पा स्पाप्रांणीयानइंसंज्ञासमा ज्ञान नऊ ते के सम्यग्ज्ञानन 1 से से ज्ञा जिमन करतेक दियइबs दर्ज | पूर्वदिसि थकी श्राव्य ॥ प्रद्मेसि । पञ्चच्चिमा उ वा दिसा मागमं सिराजे वा दिसा | अथवा दिसिथ की ऊं प्रायउं दमेसि तथारी बिजी दिसि थकी प्रायदिसि बिदि सिकन्दवा या कति बायन ईसानच्या रिए हने ांतिरातिश्राव विदिभिदेती निरीक्षणीय रिबार विद सियार दि सिऊई ने दो सदासय दिसि जोगीप मंसि । अन्नयरीजवा रिसाउ | अणु दिसावा या दुनैानुसारि थवा न थी एक नइ ९६। तथापूर्व जन्मिॐ कुनार की नाही रास्ता दिस दिनाची संज्ञान थी॥" थवादेव तदाति चममुच्यत कहीयइ ॥ ६०३५६ वो नजारा ॥ इसिससार व्यातिरिय राजा मागि उहाउ वा दिसा मंसि श्रादा दिसावा याचक्क गाव परिक जीवन जिम र्विश्क फंतिम दिवैवजी एक जीवन जान जानावरणीयकर्म विशेष जानते है एमाद श्रात्मा शरीर देवदामा पानी नइ ॥ सदन रिजहार९६६ उबइ ॥ दिवाने अर्थ प्रमं सि एवामागसिप सातंवंतिया उदबाइए। नचिमेाया उनवाइए कत्र्यासीकिदा इज्चुए काया तस्य धी त्रिदिना मेरे मोदिजन्मि का था। श्वश्मक सोच मेरी संपदने परवी | वणिजाने इम अवधिमन / परम देती करते नैवाग | नीर्थकर थकी अराध्य तय ज्ञान व तेजाइते | ॐश्वदिमिरो देवनिश्श्या नगरने विवजित स्पइहोपनिजी एइ सेज्ञान ॐ इत इजीलाई कि लदी पर्याय के व जाती स्मरण र उपाद सिकरी जागो तेन समीप सलली जाम लिमी कहवा की राजा धारण एक था वो नाजारा दक स्वयमय जाएगा स्वा मावि महादेव इदपे चालवस्सामि | से हों उद्या सदसम्म याए। प्रवागरले सिंवातिए सोचा तेजदा पुरच्चिसाइतिवचनाव हवेनाव्यतावस ज्या लेना दी जई धर्मकविनेश ज्यनैधर्मनै विषया वालागी तिर्णमाश्वी किलका रमा तरा ज्यादातर कडस्फेले 9 ननरकादिमकल है स्वर्ग बने भागल प्राज्ञष्मी इसराकर राज्य सक जब साधक धर्म कर वापतेमा व थानाय इससे जी उत्रने किस तानने नटराज वासक पाश्रमामैना निकल कल्या धर्मय कदा बोकपितामच तापसी समस्त तापमनिकापाता मानती रहे अन्यामावस्यानाति के नापस उदघोषा की तापसोस बार आनाकुटिङस्पति श्रवत् वायाकारस के त्रिसादि पुते माथPage Navigation
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