Book Title: Acharanga Sutra
Author(s): Sudharmaswami, Mayachand Matthen
Publisher: Vikramnagar

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Page 142
________________ वामन गोदोदिका तथा बी. सराशनकरी समवेत बताते ग्रासन थकी लगाई ताकि वैल्प पा श्रीमहावीर तो उसका यावेो सिरानी 5. दुषणासदारापरं षमलिवा तेहनी पर तिष्टांत करुन परिसदसदिवान प्रावधान लीप्रति ज्ञानकोश्री मनमाविमा २० जिम सेयाम नइ विषइ रूमा परी सन् उपसर्यथ की उपनाउनुख किम यसमा मस्तु कि सरस व र लिमुषयेई पर सहसा ॥ ॥ १२ ॥ तादिशि शस्त्रले दी 3 यदि प्रिंसु । प्रवाचा सरणाखख सुवासकाए पयासी उरकस दिलवा पन्ति |१२|शरासं संगनामा गत श्रीमदादी र तिमिलाहा दिदशिप्रकपरीमदीमाः खरूपज्ञा स्त्र प्रहार से दान उई तक बोर : रक प्रतिमा सदमे भी परिवनिः प्रप लगवंत चाल्या इलिपरिविदार कि ज्ञानदर्शनचारित्र रूपमा मार्ग की नानी ॥ १३ ॥ संम्लते। एसवि० एविधिश्री महावीर देवच्या गामसी |सवा | संतासम दावी र मिसनमा फसाई चाल सगवरीचा १३ एसविदितेो व इत्यादि व्यास्या पूर्वसीय रिजवी ॥] ॥ ॥ इतिश्री उपधानताध्ययने शती यो उद्देशक समाप्तः ||१४|| | दिवश चौथी उसको वो ॥ त्रीये उदेसा मी परीसह उपसर्यस दिवौक है।। इहां रोगपी विकलाने करिव सम्पन है एव3 ॥ मादारण मती मत्ता बऊसोप्प भिन्नएं लगवाया एवंरीयंति तिबेमिः||२४|| इति उपधानाध्ययन अधिकारक है ॥ ३॥ श्रीः ॥ उम०जीत देशम का ज्ञाता ममादिक परीसम की यश्परं उगादी करी नसकी तथा तेलग तक स्वादिकैस्पृष्टएताव लगत रोगी नापाता दिनकालाविल उणे दर्शक रिवाजोक रोग उपयो ताकी अनेक वेदनविषेय० तो मे ना उपसमलली ऊ गोदरी कर श्री वर्धमान सहन कर्मनिर्जना सीकर | स्वासादि हविलगंवं रोगेदि । मुद्दोवा साम्रादा मास रालोक श्री परे का सश्वास कर दिय की रोगने जानिरा तीय उद्दशकः समाप्तः ॥ः ॥३॥उमोदरि एयंचा एतं

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