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१६ व ६ : ||| खुश माग | इहे मागाव | श्ररका तिसार | जस्सिमाउ | जाती उस सुप मिल दिया उं | सर्वति । पारिवान द्या मावधानतेन से हमे धर्म है। स० सम्पकसप संयम विष १० प्रज्ञान सम्पक जाए| वलीतेहिविशेषक देव निखे निक्षिप्त मुक्या मनो वचन उद्यत न एतावता एक पण उजेहमादिव काय रूपजे एवानधर्मक॥ ॥ ॥ ॥
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मनुष्यलोकमा दिसा दर्शनवारित्र रूपी यमु किमाका दिन धर्म करती एक लेककर्म
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तह मादरी धर्मम उद्यमकर एकवली विपरीत प्रवर्तक है सीदावता धर्ममार्थन विष पान हितबुद्धि | विषसीदाइतेका एव अस्ति श्री धर्मस्वामिकल सेवे निरुद्यमवाम्देष ९६वा विवेक जोवनेकरि ते कर्ज तारकरी रवचन मुक्तिसहित बोल उते के दवा। 3 दिवैशिष्पन बस उन्हें सौ सि० जिमले का बाद इन विष हमक विनि० गोध जाग विवि एम्हर बन से यमन
इति परिश्रा तीर्थकर धर्म कहते एक प्राप्तकर्मविवर हवामहावीर विविध नानाप्रकारिसंयमरूपी 3 संग्रामपराक्रम इंद्रिय कम्मरुपीयाक्रम तथा सामान श्रीती किर धर्मप्रकास कि बत। एक प्री बलभी न उदय
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