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________________ श्राचारंग ধ नामादिके बोलावी तेजा रूपरसगंध स्पर्शमां दिल से कोई एक कुरते बोलावी इयत्तमाहि एक ग्रीतेषा ) पंचम लोकसार सूतमय ममो कूल ते कुर्मणिवा है वै। यद्यपि पूर्व इनसे इत्यादिक विशेषय की निराकरणको परे तथापि सामान्य की निराकरण करे बस नाम था इलिकारण नाध्ययन कहते है समावरून श्रीगंधी रसेन ही रूप ॥ इ एम साइजवस्क मा ले माहिते हम निषषच्य नेरो को इविना देवतिमा हिलो पहिलो दिसा प्रारसी यैवशा मारा यमेबोटे करतल शेषता विदेसी नाम रुपक दीयेत्ति श्री स्वामिकाते देती सल्फेतिमक से। ॥ 1 य युस्सा ययन चि सासू रुगा गांधी सेकस शचताद ति त्तिनिमि । इति लोक सारा ध्ययान पष्टे दशकः जे कमाकर मनुष्य लोकमादिमान नृतिपथ की धर्मदेशना प्रगट जजेहन केवली अथवा कृतके व जीने मारुती माने कोई धर्मन कवीर्थंकर मानात वमनुष्पविषा वैश्यकनदर्शभित्र परिज्ञाययनिताषी जाति केंद्रीयादिकते सामान्य बली र तिवाय नाभीत के न करणारे खाते नरमनुष्य कला विपदान कवि सर्वधक सर्व प्रकार सक्ष्म बादर पर्यायी वली कहते स्फे ज्ञाता जान इजी वादिपदार्थ जाली नतेन कारण। इ० धर्म कदे निमशाद उ । इत्यादि ॥ सत्यादिशंकारहित ही परिजाली इतेषयते ज्ञानमत्यादिक पंच से के वज्ञानक नीम करीत १६ व ६ : ||| खुश माग | इहे मागाव | श्ररका तिसार | जस्सिमाउ | जाती उस सुप मिल दिया उं | सर्वति । पारिवान द्या मावधानतेन से हमे धर्म है। स० सम्पकसप संयम विष १० प्रज्ञान सम्पक जाए| वलीतेहिविशेषक देव निखे निक्षिप्त मुक्या मनो वचन उद्यत न एतावता एक पण उजेहमादिव काय रूपजे एवानधर्मक॥ ॥ ॥ ॥ ० अतिथिश्व मानन धी उज्ञानक ते केदन‍ धर्म कहते कह चित्तना तेह मनुष्यलोकमा दिसा दर्शनवारित्र रूपी यमु किमाका दिन धर्म करती एक लेककर्म खास पारण | म एलिस कि हूं। तसिंस मुठिया एंग। णिरिकशदंमाएं। समादियाएं |(पन्नागमं तान् । इदमुत्र तह मादरी धर्मम उद्यमकर एकवली विपरीत प्रवर्तक है सीदावता धर्ममार्थन विष पान हितबुद्धि | विषसीदाइतेका एव अस्ति श्री धर्मस्वामिकल सेवे निरुद्यमवाम्देष ९६वा विवेक जोवनेकरि ते कर्ज तारकरी रवचन मुक्तिसहित बोल उते के दवा। 3 दिवैशिष्पन बस उन्हें सौ सि० जिमले का बाद इन विष‍ हमक विनि० गोध जाग विवि एम्हर बन से यमन इति परिश्रा तीर्थकर धर्म कहते एक प्राप्तकर्मविवर हवामहावीर विविध नानाप्रकारिसंयमरूपी 3 संग्रामपराक्रम इंद्रिय कम्मरुपीयाक्रम तथा सामान श्रीती किर‍ धर्मप्रकास कि बत। एक प्री बलभी न उदय ४२ म गंगे | एवं एगेम दावीरा | विष्परिकम्मति (पासद एगे विसीटामा ए| पन्त पन्ते साब मि | सजदा वि | काम्म द des
SR No.650010
Book TitleAcharanga Sutra
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorMayachand Matthen
PublisherVikramnagar
Publication Year1736
Total Pages146
LanguagePrakrit
ClassificationManuscript & agam_acharang
File Size75 MB
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