Book Title: Acharanga Sutra
Author(s): Sudharmaswami, Mayachand Matthen
Publisher: Vikramnagar
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सकलत 6ि /
वतीसंगऋविज्ञायता सुपक्षियूपचपनाएकाउपनिबोधऊपनी तथा प्रतिमानापरमच मोकने पराक्रमकरीबलवीय जेदनाणीयो०एपरियडकीविश्तीसमापूरमध अनश्कहीमाईतेसात अकरतानऽसिम रडायनासण्याआधरिछनानादिकपदव विषारकष्टीवतजविवि फोरबिस्याललीपप सम्पयजानरूपजेहनवतेजन विषत्र मस्तीर्थकरनामुषय वानगीतिपत्चिदमा जाणादरुया
दनामाकारसमष्टा देशका अर्थबशअनिश विषमयीश्मश्री कोसामान्य। परिवरणहारमा
नविषय
गुरुन उपदेकहबजाहिजेक दिan अदिजाएगासमुपमिबुदायुवीयंतिनका परिमापरमंध विष्परिकामा गतसाचवबंसधेरंतिवमिसिसुयाम | अमेकटतामाद अरेमीवनश्यक- अन्यथानी तथा एन परियन शेदकव्यावीवानगीजीवकोकशापादिकावश्ले ब०धर्मयकाबाहिद अप्रमन्नवत में लहिया नवर्यजनऽविश्व
पत विषविरत निकृमणगारमा सहसहश्वजीउपनाकहनाअदो शिष्यपमन्नजपमा विदेषीनइसपुरीब यमानुष्ठानमा सम्मतकस्व तायकाप्रमोटिव
दीपरतीर्थकञ्चधवास्वतीर्थका
फे करतेक का
लइनिशिकार उब्ध
43 अशधाम बंधपामारका अशाबाचवायचविरतिअणागारदीदशय तितिरकएसम्म बदियापासाअप्पा
मारकव्हती मुनिनवतावासम्मकतासम्पयप्रकारिपालिजेदमकद ॥इतिश्रीलोकसाराअयक्तिीयोहिशकसमानः॥२॥श्रीरस्तः आले कई लोक उबापचीसुधमीस्वामिनउवचनजाणिवा
हिवैत्री नोउदेमवषारसायबानाउदेसअविश्भवादीवरियता अविषश्परिय काश्दातेदधकाविपरीतकहीयवहा सूत्रका
बसीकरुती मानापरिवए।पतामा सम्मऋणुवासिकासि निबिमि इतिश्रीलोकसाराध्ययक्तिीयोउद्देसकः॥र बाद 3 निःपरिसहसाएदसअज्यबऊलादिपरियहि अथवाषट्कामजीवविषममतानमाविपरिया साचायनीकरतातीर्थकरनीवासभिागामी नि दिया अवधारीतमविज्ञापरियहवामी | नीम् जिमिपरियदया।
दियनि -परियदकिमयाऽप्तेकदै॥ श्यसातलीममधाबीनणातथायमित निपरि अदरतेतीर्थकरमणधधम
रादिकतिदम् वधमविश्विनिरूपमा किमकतत्तकदर
कावंती जोगसिंअपरियवती।एएसाचवाअपरियदाती सोचावतिमहावी पंशियारपणिस्सामिया

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