Book Title: Acharanga Sutra
Author(s): Sudharmaswami, Mayachand Matthen
Publisher: Vikramnagar
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रखजुनिवडलद० ज० जिशिकारिणिसं परिज्ञाविवेकज्ञाननी विशिष्टपणाएतले बुब्बालअज्ञानकनिश्रमायागतिमौकारणधर्मल अणमीजिमनश्ववएश्वश्शिकही। दो दिल सारजसलकरतातीधा फककंकिणहीम का अध्यवसाय था-वश्काउंगनीदिविधराचइएतावतारा यस्तधावलीजेागजकूदीस्पश्तेषण कर सेग म सार अव्यबसूनाकारलताब्यूशन उमसारखधाइदवास्वकिव्दकवितकर रातिमम्जमानियनविशो
जजिनप्रवचनाविधकहाय ॥ पकहरवा
०रूपवदियनाविषश्वाशश्यकाम्प Isदिपाम देखाउन्नदानदेन ऊसालहि परिलाविशवगे सासित्तेऊबाल गज्ञातिसुरकति सिंवेयं पचतिर शलिअरिद कारमादिविषामा सैनिश्चतेजितडीययक्तिीथमुनितिकमुष जितेम्फकरतोलोकना-विषयकवाययस्त नाकावणमकाविपरीलोलीस्फरे। नौपापक सिनेकर्मनपरि
विवा०हिंसान मस्वरूपनमाणसापरुसम्परप्रकारिष्यधिक दिसादिकर्मनाविषयप्रवृतश्मवे आजीवन -श्याप्रकाश्विकर्मत हरणहारकिमानीवरीपन श्वती गरि विषतानप्रवर्तत करतादीनानदेशी
आपणपश्असतव्यापारयालीसानादिस नाकारणेसर्वप्रकार जपरिमजीवी ही सत्तरसिदमयम।
न्यारत्मानपरिज्ञाऽसूर्यधकारिक
धमायनउजागधाइ प्रासिनीकारण धर्ममकीवश्वस357
निकम्मर किमपरसरकवारत रिवा जावयक सिवालिसियामऊपायसदिध्यादमुणी श्रमदालारामुघगमाया परिलायसवासा सिपादिसति संज अयुतऊत सोप-काविसयमकमी अजाणतउत्पिकालियानमा बनाक्सी लोक काईपापारसनकरइ सर्वलोकविषाएक०कमानविषावि०मयममममधकाविप निवि संवेगतिरुनी
हेमादिक अवस्तिजलाजश्वष्टिप सुषाणिकारलिप्राविहंसानकर माघानीयानि टिशवायमविषएकाति रीतस्थिकीतजएतावता पर विवस्तथा श्रावधारथ एउमकरहदिवफा मकरसफकरक साषा॥
रक्त अंगरखकोई एकपहरमबत असंयमथकानिन्नावलीकेदवा कानित गीएकरतेकहरवा
जालावलीकेदव केवरूत देश मतियापाशति उवेक्षमारा पानयसाय वाला देसी पारसेकवण सबानाग एकप्पमुदाविदिसम्पतिन्न निविषा अमप्रजापणाथको अ. सिकन्जेदेशितषणलषिततेवमुमतपयसदि
आपण अकर्तव्यपापाकर्टिसादि- तो नेगवेपनीरलावताप्रकर्मपापणीक विनापारसयका निशा सावतामनिगमनयोग्यमबंधकारा
रश्नहारतलजयापकर्मभटालिवउदेश धवाजाजोकनभविषारयविशिष्टा जानकरी
जसम्पयजानतेकदेखा तममतानकर
वा अरए|पयासुसिवसुझसबसम्मलागयोपन्ना
अप्पणिणे अकरणिचंपावकम्म तानसी

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