Book Title: Acharanga Sutra
Author(s): Sudharmaswami, Mayachand Matthen
Publisher: Vikramnagar
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कामको मिसागरोपममादिवितिनां
5405अन्सिंवेदना न विवडते ऽवयवश्वे | जेाकहिक० ३दारी आगमोक्त कार एबिना की धकर्मालिघातादिक) एवंसे- इशाप्रका नाना हिपप्रवर्त्ततांकि स्तूपादादिनेति मतले स्पंकज मन्त्री जे काम तेज्ञपरिजा इजा ली (विवेग मेतिक हताश विश्व नमाजे रागलिकही स्पर्शमा विघातकपने जघन्यस्वति को कायसे घटादिककर्म करते जलविषाव कर जेल ते कर्मपाव ॥ स्पेने लाइमकारिते शाको दिमाग पर स्थिति जस विष एवादिवाटको कमिजेक हिव सोपरा पिककर्मन श्राचारंग इवावेयर तैररुबड देषा "३८
तेरे बा
विलाएगतिया | पापाउदा ांति | इहले गावा गावा व मियं | ऊंच्या हि कयंकम्म ( तं परिणाय | विविगामति एवं प्रमादनाकरिव दत्राविधप्रायश्चितसम्म सात दसी कहताघा १०६ जीवर षिवानो उपाय उपसांतकषाय समितक स० ज्ञानादि सर्वदा संयमनैचि करे वली स्त्रीच्या भुटानविवेक पादिन की र्त्तिकताकतिक कर्मनो विपाकमतीत जाइएतावता यावस्थित नपस मावि रीसमित करीसदि यो दिनाश्र विदवी ती में कर गलधरादिक दिवदव वर्तमानकालीन ससारस्वरूप न देषणदार व ॥ 3. इदेवाहीर ॥ प्रमादरहित ॥
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3 गुरुसमीप जपेरिसह ऊप सतप्रमादनि अस्फकर कर्मनाक है ॥
रसपमा एवं विवगंकि डंति देवी ॥ ससीप्तपरिमाण | उवसांत | समिए | सदिय/सयाजय/दहेवि द.स्त्रीजननो उपसर्थक रिवा मइउद्यतदेषवि० कदमध्यालवर एस० ते एस्त्रीजन परमारमिक दत्तांश मोतिलकार परमाराम ॥ जा० जेलो इममुखी श्री वर्धमान स्वामी अवध अध्यात्मात स्त्रीजनमा हर फकरम जन जीवत आराम स्पास ही जिलिका र सिमटा कमांदिस्त्री मारूप इसउजी साय जे सापडे कब मनी प्रशानीतमा र उस्फेकरिस्पर। अथवा स्त्रीला नास्पविना सादिक शकरी विदियास विमा सति किस३ ॥
ही बोमवी॥
रमाई ॥
प्पडिवति । चप्पाशी किमा सजाएगा | करिसंती | एसास परमाराम | जाउ लोगं रस इचिज | मुलि गाऊ एयं यावदितं
उच्चादिण्ग्रार्मधर्म कहताविषयी
थाइ | तथा। मोद० उणो
निर्बल सारांत प्रांतादिकजे। गुरुप्रसृतिसीपवीत केरुन इष्यते हनौसर करुती मिला थाइते कदैन । रथाइबलमा सावि विषय न पामथाइल प्रीतादिदारी
दरीकर
२०
अनादिजमाएगाम्शम्मदिं । विपिनास । विमोदरियं कुछ विहंगावाडा श्रविगामा गा
तथा। उंगल० काउ सगनीच्या एतत करतो विषश्वपसमैन दीन ग्राम परिहर5 किंवा तपनासह || उपाइ विषय थी इवा निवृत्तैते उपायकर

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