Book Title: Acharanga Sutra
Author(s): Sudharmaswami, Mayachand Matthen
Publisher: Vikramnagar

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Page 64
________________ ॐजेदमणितिधरुषपानामतापहष्टमा लेदसणीआरंमोवृश्यमायद्यानुष्टानयकीनिष्टनदि गादिकशवधतामिव तयादारुणजिसदीनसक्यि पलिक०सातपापयनत मतनेदसणीबुधवनउजाणा Taशियपत दिशाकाहारमयकीन ककमादिकधारशिवपरितापपामा कारतिपरािबंदियोंकी तिवनसम्मयसाधापोमदविवेकश्करीजो वजिशिकारणिसावद्यारसप्रहलापुरुषबंधाना एसददनकरणका दलपीनारसमष्टालिका सम्मराजाणितथा॥ उस्सियामिक्रयमाणमांताबाद आशंसावरएसमामयंतियासक्षा जणबंधधदंघोपरितापंचदारुणपलिहिंदियाबा तिम्रोतकहवाबाविस्ग नि माकगतिनदिषणधारयाणा कर्मज्ञानावरणण्यादिकतेहनउसफल चारपबीवदवीपरमार्थ ज्ञानानि नोएदवेआमंत्रणक्चनिखजुनिश्चजे महिनशानादि बावधनधान्यादिदिमा संसारिमनुष्पविषऽभेमोक्रमाद पजेरुवउकरियरतनवउलोग जाऽव्याश्रवथकानीकलैए के अतीतअनागतवर्तमानधारकूम कश्मदातपस दिआप्रवरूपवाश्यक जीतवान्याप्तरंगीतश्उनेदा विषाफलदधीविवारी तगीतेका तावतापेक्षितकमविपाक विदा रिवासमधीममिवईयसमि यमनविषय अतराषिरूपवजाणिवा प्रकरणेमंसारिखमण निवत्तविश्सर्थ निरताजा खोकी ॥ ਹੋਵੇਚ हिवैतरुनाफलकदमा दिरगंधासायनिकम्मदमीश्चमचिएदिशकम्मणामफलंदतु ततोनिकाशवदवी जरवलुसोवीरासमिनासदिन र सेय०निरंतरदेषण आत्माईवपरसनि अव्ययास्तितचअदरकात्मलोक प्रावीपर्व पश्चिम रक्षिला उत्तरदिमशव्यय वितरयाऊ अतीतकातिरमा त्यापापकर्मयकाल अथवाकर्मलीका देवती। नामपसीवापसंयमतद वनमानिका जिर विषादेव" सता जया संथदंसिाणा आजवरया अदातदा लोग अवक्षमाणा पाईणं यडी/दादि उदी तिसचंसिपशिविण आगामियश्कालिरदस्पतेत्रातीनअनागतवनमानसमवेतपदवानउजे मईयादिसमितसता निरंतरदेषणार आत्माउपरवनिया ययास्वितजाकरेषतान ज्ञानवसिपायनेम्वनइकदिस्यज्वसिसजवारक मेवीदारिता नादिसहितसय मियापक मेथकी। समधा नवर विहिंसासादिम्मामामाणे वाराणसमिसाणासदिन्नण सदाजयाणं संघदसी आउघरयाणे दातहालागसु

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