Book Title: Acharang Sutram Dwitiya Shrutskandh
Author(s): Punyakiritivijay
Publisher: Shripalnagar Jain Shwetambar Murtipujak Derasar Trust
View full book text ________________ श्रुतस्कन्धः२ श्रीआचाराङ्गं नियुक्तिश्रीशीला० वृत्तियुतम् श्रुतस्कन्धः२ // 641 // कथनम् णाणि वा० उवागच्छंति इयराइयरेहिं पाहुडेहिं एगपक्खं ते कम्मं सेवंति, अयमाउसो! अप्पसावजकिरिया यावि भवइ 9 // एवं खलु तस्स० // सूत्रम् ३०९॥२-१-२-२॥शय्यैषणायां द्वितीयोद्देशकः॥ चूलिका-१ द्वितीयमध्ययनं सुगमम्, नवरमल्पशब्दोऽभाववाचीति 9 / एतत्तस्य भिक्षोः सामग्र्यं संपूर्णो भिक्षुभाव इति // कालाइकंतु 1 वट्ठाण 2. शय्यैषणा, अभिकंता 3 चेव अणभिकता 4 य / वज्जा य 5 महावज्जा 6 सावज्ज 7 मह 8 ऽप्पकिरिआ 9 य॥१॥ एताश्च नव वसतयो यथाक्रम तृतीयोद्देशकः नवभिरनन्तरसूत्रैः, प्रतिपादिताः, आसु चाभिक्रान्ताल्पक्रिये योग्ये शेषास्त्वयोग्या इति // 309 // द्वितीयोद्देशकः समाप्तः / / सूत्रम् 310 शुद्धवसति२-१-२-२॥ ॥द्वितीयाध्ययने तृतीयोद्देशकः॥ उक्तो द्वितीयोद्देशकोऽधुना तृतीयः समारभ्यते, अस्य चायमभिसंबन्धः, इहानन्तरसूत्रेऽल्पक्रिया शुद्धा वसतिरभिहिता, इहाप्यादिसूत्रेण तद्विपरीतां दर्शयितुमाह से य नो सुलभे फासुए उंछे अहेसणिजे नो य खलु सुद्धे इमेहिं पाहुडेहिं, तंजहा- छायणओ लेवणओ संथारदुवारपिहणओ पिंडवाएसणाओ, सेय भिक्खूचरियारए ठाणरए निसीहियारए सिज्जासंथारपिंडवाएसणारए, संति भिक्खुणो एवमक्खाइणो उज्जुया नियागपडिवन्ना अमायं कुव्वमाणा वियाहिया, संतेगइया पाहुडिया उक्खित्तपुव्वा भवइ, एवं निक्खित्तपुवा भवइ, परिभाइयपुव्वा भवइ, परिभुत्तपुव्वा भवइ परिट्ठवियपुव्वा भवइ, एवं वियागरेमाणे समियाए वियागरेइ?, हंता भवइ॥सूत्रम् 310 // अत्र च कदाचित्कश्चित्साधुर्वसत्यन्वेषणार्थं भिक्षार्थं वा गृहपतिकुलं प्रविष्टः सन् केनचिच्छ्रद्धालुनैवमभिधीयते, तद्यथा® कालातिक्रान्ता उपस्थाना अभिक्रान्ता चैवानभिक्रान्ता च / वा च महावा सावद्या महासावद्या अल्पक्रिया च // 1 // // 641 //
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