Book Title: Acharang Sutram Dwitiya Shrutskandh
Author(s): Punyakiritivijay
Publisher: Shripalnagar Jain Shwetambar Murtipujak Derasar Trust

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Page 209
________________ श्रीआचाराङ्ग नियुक्तिश्रीशीला० वृत्तियुतम् श्रुतस्कन्ध:२ // 732 // कृत्वा परेषां शारीरमानसा वेदना: स्वत: प्राणिभूतजीवसत्त्वास्तत्कर्मविपाकजां वेदनामनुभवन्तीति, उक्तञ्च पुनरपि सहनीयो दुःखपाकस्तवायं, न खलु भवति नाशः कर्मणां सञ्चितानाम् / इति सह गणयित्वा यद्यदायाति सम्यक् सदसदिति विवेकोऽन्यत्र भूयः कुतस्ते? ॥१॥शेषमुक्तार्थं यावदध्ययनपरिसमाप्तिरिति // 396 // षष्ठमादितस्त्रयोदशं सप्तककाध्ययनं समाप्तम् // 2-18-13 // श्रुतस्कन्ध:२ चूलिका-२ सप्तसप्तिका, षष्ठी सप्तकका परक्रिया, सूत्रम् 396 परकृतक्रिया निषेधः

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