Book Title: Acharang Sutram Dwitiya Shrutskandh
Author(s): Punyakiritivijay
Publisher: Shripalnagar Jain Shwetambar Murtipujak Derasar Trust
View full book text ________________ श्रुतस्कन्धः२ श्रीआचाराङ्ग नियुक्तिश्रीशीला० चूलिका-३ भावना, वृत्तियुतम् सूत्रम् श्रुतस्कन्धः२ // 743 // (अनुष्टुप्) 112-130 सूत्रम् 401-402 श्रीवीरवर्णनम् ॥सूत्रम् 400 // समणस्सणं०३ अम्मापियरोपासावच्चिजा समणोवासगा यावि हुत्था, तेणं बहूई वासाइंसमणोवासगपरियागं पालइत्ता छण्हं जीवनिकायाणं सारक्खणनिमित्तं आलोइत्ता निंदित्ता गरिहित्ता पडिक्कमित्ता अहारिहं उत्तरगुणपायच्छित्ताई पडिवज्जित्ता कुससंथारगं दुरूहित्ता भत्तं पञ्चक्खायंति 2 अपच्छिमाए मारणंतियाए संलेहणासरीरए झुसियसरीरा कालमासेकालं किच्चा तंसरीरं विप्पजहित्ता अच्चुए कप्पे देवत्ताए उववन्ना, तओणं आउक्खएणं भव० ठि० चुएचइत्ता महाविदेहे वासे चरमेणं उस्सासेणं सिज्झिस्संति बुज्झिस्संति मुच्चिस्संति परिनिवाइस्संति सव्वदुक्खाणमंतं करिस्संति॥सूत्रम 401 // तेणं कालेणं२ समणे भ० नाए नायपुत्ते नायकुलनिव्वत्ते विदेहे विदेहदिन्ने विदेहजच्चे विदेहसूमाले तीसंवासाइं विदेहंसित्तिकट्ट अगारमज्झे वसित्ता अम्मापिऊहिं कालगएहिं देवलोगमणुपत्तेहिं समत्तपइन्ने चिच्चा हिरन्नं चिच्चा सुवन्नं चिच्चा बलं चिच्चा वाहणं चिच्चा धणकणगरयणसंतसारसावइज्जं विच्छड्डित्ता विग्गोवित्ता विस्साणित्ता दायारेसुणंदाइत्ता परिभाइत्ता संवच्छरंदलइत्ता जे से हेमंताणं पढमे मासे पढमे पक्खे मग्गसिरबहुले तस्सणं मग्गसिरबहुलस्स दसमीपक्खेणं हत्थुत्तरा० जोग० अभिनिक्खमणाभिप्याए यावि हुत्था॥१॥संवच्छरेण होहिइ अभिनिक्खमणं तु जिणवरिंदस्स / तो अत्थसंपयाणं पवत्तई पुत्वसूराओ॥सूगा० 112 // एगा हिरनकोडी अट्टेव अणूणगा सयसहस्सा।सूरोदयमाईयं दिज्जइ जा पायरासुत्ति / सू०गा० 113 // तिन्नेव य कोडिसया अट्ठासीई चहुंति कोडीओ।असिइंच सयसहस्सा एवं संवच्छरे दिन्नं / सू०गा० 114 ॥वेसमणकुंडधारी देवा लोगंतिया महिडीया। बोहिंति यतित्थयरं पन्नरससु कम्मभूमीसु॥सूगा० 115 // बंभंमि य कप्पंमी बोद्धवा कण्हराइणो मज्झे / लोगंतिया विमाणा अट्ठसुवत्था असंखिज्जा ॥सूगा० 116 // एए देवनिकाया भगवं बोहिंति जिणवरं वीरं। सवजगजीवहियं अरिहं! तित्थं पवत्तेहि ।।सूगा० 117 // 743 //
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