Book Title: Acharang Sutram Dwitiya Shrutskandh
Author(s): Punyakiritivijay
Publisher: Shripalnagar Jain Shwetambar Murtipujak Derasar Trust

View full book text
Previous | Next

Page 227
________________ श्रीआचाराङ्गं नियुक्तिश्रीशीला० वृत्तियुतम् श्रुतस्कन्ध:२ श्रुतस्कन्धः 2 चूलिका-३ भावना, सूत्रम् (अनुष्टुप्) 131-135 सूत्रम् 402 श्रीवीरवर्णनम् // 750 // अणुवीइभासी से निग्गंथे नो अणणुवीइभासी, केवली बूया-अणणुवीइभासी से निग्गंथेसमावजिज्ज मोसं वयणाए, अणुवीइभासी से निग्गंथे नो अणणुवीइ- भासित्ति पढमा भावणा ॥१॥अहावरा दुच्चा भावणा-कोहं परियाणइ से निग्गंथे नो कोहणे सिया, केवली बूया- कोहप्पत्ते कोहत्तं समावइजा मोसं वयणाए, कोहं परियाणइ से निग्गंथे न य कोहणे सियत्ति दुच्चा भावणा // 2 // अहावरा तच्चा भावणा- लोभंपरियाणइसे निगंथे नो अलोभणएसिया, केवली बूया-लोभपत्ते लोभी समावइजा मोसं वयणाए, लोभं परियाणइ से निग्गंथे नो य लोभणए सियत्ति तच्चा भावणा॥३॥ अहावरा चउत्था भावणा- भयं परिजाणइ से निगंथे नो भयभीरुए सिया, केवली बूया- भयपत्ते भीरु समावइज्जा मोसं वयणाए, भयं परिजाणइ से निग्गंथे नो भयभीरुए सिया चउत्था भावणा॥४॥ अहावरा पंचमा भावणा-हासं परियाणइसे निग्गंथे नो य हासणए सिया, केव० हासपत्ते हासी समावइजा मोसं वयणाए, हासे परियाणइसे निग्गंथे नो हासणए सियत्ति पंचमी भावणा॥५॥ एतावता दोच्चे महव्वए सम्मकाएण फासिए जाव आणाए आराहिए यावि भवइ दुच्चे भंते! महव्वए।सूगा० 132 // अहावरं तच्चं भंते। महव्वयं पञ्चक्खामि सव्वं अदिनादाणं, से गामे वा नगरे वा रन्ने वा अप्पं वा बहुं वा अणुंवा थूलं वा चित्तमंतं वा अचित्तमंतं वा नेव सयं अदिन्नं गिण्हिज्जा नेवन्नेहिं अदिन्नं गिहाविजा अदिन्नं अन्नपि गिण्हतं न समणुजाणिज्जा जावज्जीवाए जाव वोसिरामितस्सिमाओपंच भावणाओ भवंति, तत्थिमा पढमा भावणा- अणुवीइ मिउग्गहं जाई से निग्गंथे नो अणणुवीइमिउग्गहं जाई से निग्गंथे, केवली बूया- अणणुवीइ मिउग्गहं जाई निग्गंथे अदिन्नं गिण्हेजा, अणुवीइ मिउग्गहं जाई से निग्गंथे नो अणणुवीइ मिउग्गहं जाइत्ति पढमा भावणा // 1 // अहवरा दुच्चा भावणा- अणुन्नविय पाणभोयणभोई से निग्गंथे नो अणणुन्नविअपाणभोयणभोई, केवली बूया- अणणुन्नविय पाणभोयणभोई से निग्गंथे अदिन्नं भुंजिज्जा, तम्हा अणुनविय पाण-भोयणभोई से निग्गंथे नो अणणुनविय पाणभोयणभोईत्ति दुच्चा भावणा॥२ // 750 //

Loading...

Page Navigation
1 ... 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240