Book Title: Acharang Sutram Dwitiya Shrutskandh
Author(s): Punyakiritivijay
Publisher: Shripalnagar Jain Shwetambar Murtipujak Derasar Trust

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Page 228
________________ श्रीआचाराङ्ग नियुक्तिश्रीशीला० वृत्तियुतम् श्रुतस्कन्धः२ // 751 // श्रुतस्कन्धः२ चूलिका-३ भावना, सूत्रम् (अनुष्टुप्) 131-135 सूत्रम् 402 श्रीवीरवर्णनम् // अहावरा तच्चा भावणा- निग्गंथेणं उग्गहंसि उग्गहियंसि एतावताव उग्गहणसीलए सिया, केवली बूया- निगंथेणं उग्गहसि अणुग्गहियंसि एतावता अणुग्गहणसीले अदिन्नं ओगिण्हिज्जा, निग्गंथेणं उग्गहं उग्गहियंसि एतावताव उग्गहणसीलएत्ति तच्चा भावणा // 3 // अहावरा चउत्था भावणा-निग्गंथेणं उग्गहंसि उग्गहियंसि अभिक्खणं 2 उग्गहणसीलए सिया, केवली बूया- निग्गंथेणं उग्गहंसि उ अभिक्खणं 2 अणुग्गहणसीले अदिन्नं गिण्हिज्जा, निग्गंथे उग्गंहसि उग्गहियंसि अभिक्खणं 2 उग्गहणसीलएत्ति चउत्था भावणा / / 4 / / अहावरा पंचमा भावणा- अणुवीइ मिउग्गहजाई से निग्गंथे साहम्मिएसु, नो अणणुवीई मिउग्गहजाई, केवली बूया- अणणुवीइ मिउग्गहजाई से निग्गंथे साहम्मिएसु अदिन्नं उगिव्हिज्जा अणुवीइमिउग्गहजाई से निग्गंथे साहम्मिएसु नो अणणुवीइमिउग्गहजाती इइ पंचमा भावणा // 5 // एतावया तच्चे महव्वए सम्म० जाव आणाए आराहए यावि भवइ, तच्चं भंते! महव्वयं / / सू०गा०१३३ / / आहावरं चउत्थं महव्वयं पच्चक्खामि सत्वं मेहुणं, से दिव्वं वा माणुस्संवा तिरिक्खजोणियं वा नेव सयं मेहुणं गच्छेजातंचेवं अदिन्नादाणवत्तत्वया भाणियव्वा जाव वोसिरामितस्सिमाओपंच भावणाओ भवंति, तत्थिमा पढमा भावणानो निग्गंथे अभिक्खणं 2 इत्थीणं कहं कहित्तए सिया, केवली बूया-निग्गंथे णं अभिक्खणं 2 इत्थीणं कहं कहेमाणे संतिभेया संतिविभंगा संतिकेवली-पन्नत्ताओ धम्माओ भंसिज्जा, नो निग्गंथे णं अभिक्खणं 2 इत्थीणं कहं कहित्तए सियत्ति पढमा भावणा // 1 // अहावरा दुच्चा भावणा-नो निग्गंथे इत्थीणं मणोहराई 2 इंदियाइं आलोइत्तए निज्झाइत्तए सिया केवली बूया-निग्गंथे णं इत्थीणंमणोहराई 2 इंदियाई आलोएमाणे निज्झाएमाणे संतिभेया संतिविभंगाजावधम्माओ भंसिज्जा, नो निगंथे इत्थीणंमणोहराई 2 इंदियाई आलोइत्तए निज्झाइत्तए सियत्ति दुच्चा भावणा॥२॥अहावरा तच्चा भावणा नो निग्गंथे इत्थीणं पुव्वरयाईपुव्वकीलियाई सुमरित्तए सिया, केवली बूया निग्गंथेणं इत्थीणं पुव्वरयाईपुव्वकीलियाईसरमाणे संतिभेया जाव भंसिज्जा, नो निग्गंथे इत्थीणं // 751 //

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