Book Title: Acharang Sutram Dwitiya Shrutskandh
Author(s): Punyakiritivijay
Publisher: Shripalnagar Jain Shwetambar Murtipujak Derasar Trust
View full book text ________________ श्रीआचाराङ्गं नियुक्तिश्रीशीला० वृत्तियुतम् श्रुतस्कन्धः२ // 761 // यतितव्यमेवेति क्रियैवाभ्यसनीयेति, इति यो नयः स क्रियानयो नामेति, एवं प्रत्येकमभिधाय परमार्थोऽयं निरूप्यते- श्रुतस्कन्धः 2 ज्ञानक्रियाभ्यां मोक्ष इति, तथा चागमः सव्वेसिपि नयाणं बहुविहवत्तव्वयं निसामित्ता। तं सव्वनयविसुद्धं जं चरणगुणट्ठिओ साहू // 14 चूलिका-४ विमुक्तिः, ॥चरणं-क्रिया गुणो-ज्ञानं तद्वान् साधुर्मोक्षसाधनायालमिति तात्पर्यार्थः॥ नियुक्तिः 2 आचारटीकाकरणे यदाप्तं, पुण्यं मया मोक्षगमैकहेतुः / तेनापनीयाशुभराशिमुच्चैराचारमार्गप्रवणोऽस्तु लोकः॥१॥ 347-349 उपसंहारः अन्त्ये नियुक्तिगाथा: नियुक्तिः नि०- आयारस्स भगवओ चउत्थचूलाइ एस निजुत्ती। पंचमचूलनिसीहं तस्स य उवरिं भणीहामि / / 347 / / 350-356 निक्षेपाः नि०- सत्तहिं छहिं चउचउहि य पंचहि अट्ठट्ठचउहि नायव्वा / उद्देसएहिं पढमे सुयखंघे नव य अज्झयणा // 348 // नि०- इक्कारस तिति दोदो दोदो उद्देसएहिं नायव्वा / सत्तयअट्ठयनवमा इक्कसरा हुँति अज्झयणा // 349 // ॥इति श्रीआचाराङ्गनियुक्तिः॥ नि०- पाहण्णे महसद्दो परिमाणे चेव होइ नायवो। पाहण्णे परिमाणे य छव्विहो होइ निक्खेवो // 350 // नि०- दव्वे खेत्ते काले भावंमि य होंति या पहाणा उ।तेसि महासद्दो खलु पाहण्णेणं तु निप्फन्नो // 351 // नि०-दव्वे खेत्ते काले भावंमि य जे भवे महंता उ। तेसु महासद्दो खलु पमाणओ होंति निप्फन्नो॥३५२।। // 761 // नि०- दव्वे खेत्ते काले भावपरिण्णा य होइ बोद्धवा / जाणणओववक्खणओ य दुविहा पुणेक्ोक्का / / 353 / / नि०- भावपरिण्णा दुविहा मूलगुणे चेव उत्तरगुणे य / मूलगुणे पंचविहा दुविहा पुण उत्तरगुणेसु // 354 //
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