Book Title: Acharang Sutram Dwitiya Shrutskandh
Author(s): Punyakiritivijay
Publisher: Shripalnagar Jain Shwetambar Murtipujak Derasar Trust

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Page 167
________________ श्रीआचाराङ्ग नियुक्तिश्रीशीला० वृत्तियुतम् श्रुतस्कन्ध:२ // 690 // |श्रुतस्कन्धः२ चूलिका-१ पञ्चममध्ययन वस्त्रैषणा, प्रथमोद्देशकः सूत्रम् 369 वस्त्रग्रहणविधिः वत्थं जाइजाजंचऽन्ने बहवेसमण० वणीमगा नावखंति तहप्प० उज्झिय० वत्थं सयं० परो० फासुयंजाव प०, चउत्था पडिमा 4 // इच्चेयाणं चउण्हं पडिमाणं जहा पिंडेसणाए॥१॥सिया णं एताए एसणाए एसमाणं परो वइजा- आउसंतो समणा! इज्जाहि तुम मासेण वा दसराएण वा पंचराएण वा सुते सुततरे वा तो ते वयं अन्नयरं वत्थं दाहामो, एयप्पगारं निग्धोसं सुच्चा नि० से पुवामेव आलोइजा-आउसोत्ति वा! 2 नोखलु मे कप्पड़ एयप्पगारं संगारंपडिसुणित्तए, अभिकंखसि मे दाउंइयाणिमेव दलयाहि, से णेवं वयंतं परोवइज्जा-आउ० स० अणुगच्छाहि तो ते वयं अन्न० वत्थं दाहामो, से पुवामेव आलोइजा-आउसोत्ति! वा 2 नोखलु मे कप्पइ संगारवयणे पडिसुणित्तए०, से सेवं वयंतं परोणेया वइज्जा- आउसोत्ति वा भइणित्ति वा! आहरेयं वत्थं समणस्स दाहामो, अवियाइंवयं पच्छावि अप्पणो सयट्ठाए पाणाई 4 समारंभ समुद्दिस्स जाव चेइस्सामो, एयप्पगारं निग्योसं सुच्चा निसम्म तहप्पगारं वत्थं अफासुअंजाव नो पडिगाहिज्जा // 2 // सिआ णं परो नेता वइज्जा-आउसोत्ति / वा 2 आहर एयं वत्थं सिणाणे वा 4 जाव आघंसित्ता वा प० समणस्स णंदाहामो, एयप्पगारं निग्योसं सुच्चा नि० से पुवामेव आलोइज्जा आउ० भ०! मा एयं तुमंवत्थं सिणाणेण वाजाव पघंसाहिवा, अभि० एमेव दलयाहि, से सेवं वयंतस्स परो सिणाणेण वा पघंसित्ता दलइजा, तहप्प० वत्थं अफा० नोप० // 3 // से णं परो नेता वइज्जा०- आ० भ०! आहर एयं वत्थं सीओदगवियडेण वा 2 उच्छोलेत्ता वा पहोलेत्ता वा समणस्स णं दाहामो, एय० निग्योसंतहेव नवरंमा एयं तुमंवत्थं सीओदग० उसि० उच्छोलेहि वा पहोलेहिवा, अभिकंखसि०, सेसंतहेव जाव नोपडिगाहिज्जा ॥४॥सेणं परो ने० आ० भ०! आहरेयं वत्थं कंदाणि वा जाव हरियाणि वा विसोहित्ता समणस्सणं दाहामो, एय० निग्योसंतहेव, नवरं मा एयाणि तुमं कंदाणिवा जाव विसोहेहि, नोखलु मे कप्पइ एयप्पगारे वत्थे पडिग्गाहित्तए, से सेवं वयंतस्स परो जाव विसोहित्ता दलइजा, तहप्प० वत्थं अफासुयं नो प०॥५॥सिया से परो नेता वत्थं निसिरिजा, से पुव्वा० आ० भ०! तुमं // 690 //

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