Book Title: Achar Dinkar Part-2
Author(s): Vardhmansuri, 
Publisher: Kesrisingh Oswal Khamgamwala Mumbai

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Page 475
________________ आचारदिनकरः ॥ ३६९ ॥ Jain Education In bh bp bp m दण्डस्य तपः मोक्षदण्डतपः । तत्र यावन्मुष्टिप्रमाणो गुरुदण्डो भवति तावत उपवासानेकान्तरान्विद्ध्यात् । पर्यन्तोपवासे गुरुदण्डस्य चन्द्र mmmm |FFFFFFFFFF F F F F F F F F F नचर्चितस्य परिधापनिकादानं नालिकेराक्षतदानं । यावन्मुष्टिप्रमाणता तावत्संख्यया फलमुद्रापक्कान्नरत्नजा १६ द्वितीयं अदुःखदर्शितप आगाढं तिदानं संघवात्सल्यं संघपूजा पा अ पा न पा पा द पा ए पा च । यत्रकन्यासः । एतत्फलं विपद्भङ्गः । इति श्राद्धकरणीयमागाढं मोक्षदण्डतपः ॥ १४ ॥ ॥ अथ अदुःखदर्शितपः । शुक्लपापक्षेषु कर्तव्याः क्रमात्पञ्चदशस्वपि । उपवासास्तिथिष्वेवं पूयेते विधिनैव तत् ॥ दुःखानि द्रष्टुं शीलमस्य तददुः द्वा ॥ न प्रथममासे शुक्र द्वितीयमासे शुरू तृतीयमासे शुक्ल चतुर्थमासे शुक्ल पश्चममासे शुरू षष्ठमासे शुक सप्तममासे शुक्ल ० १५ अदुःखदर्शितप आगाढं 9 १४ मोक्षदण्डत आगाढं ३ ५ १ अष्टमेमासे शुक्र उ १ नवमेमासे शुकु उ१ दशमेमासे शुक्र ९ १० उ १ एकादशेमासेशुक्ल ११ उ १ द्वादशेमासे शुक्र उ १ त्रयोदशेमासेशुक्ल ७ उ १ चतुर्दशेमासे शुक्र उ १ पंचदशेमासे शुक्क ८ उ 9 १२ १३ १४ | १५ उ उ उ उ उ उ उ प्र 9 द्वि ว す १ च 9 पं 9 १ , प स ० उ उ उ उ पा पा पा पा उ उ उ ० 0 त्र च पू उ पा उ उ उ उ उ उ For Private & Personal Use Only पा पा विभागः २ तपोविधिः ।। ३६९ ॥ www.jainelibrary.org

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