Book Title: Achar Dinkar Part-2
Author(s): Vardhmansuri,
Publisher: Kesrisingh Oswal Khamgamwala Mumbai
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आचारदिनकरः
॥ ३७२ ॥
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| अत्रापि प्रथमदशके प्रतिदिनमेका दत्तिः । ततश्चैकैकदत्तिवृद्ध्या दशमदशके प्रतिदिनं दशदत्तयः । यत्रकाणि यथा । एवं नवभिर्मासैश्चतुर्विंशत्यादिनैश्चतस्रोपि प्रतिमाः समर्थ्यन्ते । उद्यापने बृहत्स्नात्रविधिपूर्वकं नानापकान्नफलढौकनं संघवात्सल्यं संघपूजा च । एतत्फलं मोक्षमार्गः । इति श्राद्धकरणीयमागाढं सोपान
तपः ॥ २२ ॥ ॥ अथ कर्मचतुर्थ तपः । उपवास्त्रयं कुर्यादादावन्ते निरन्तरं । मध्ये एषष्टिमितान्कुर्यादुपवासांश्च सान्तरान् ॥१॥ कर्मणां चतुर्थे खण्डनरूपं कर्मचतुर्थं । तत्र पूर्व निरन्तरमुपवासत्रयं ततः षष्टिरुपवासा ए एकाशनान्तरिताः पुनरुपवासत्रयं निरपन्तरं । उद्यापने बृहत्लात्रविधिपूर्वकं रूप्यमयं वृक्षं स्वर्णकुठारं च ढौकयेत् । यत्रकन्यासः । उद्यापने संघवात्सल्यं संघपूजा च । एतत्फलं कर्मच्छेदः । इति श्राद्धकरणीयमागाढं कर्मचतुर्थतपः ॥ २३ ॥ ॥ अथ
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२३ कर्मचतुर्थत आगाढं
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विभागः २ तपोविधिः
॥ ३७२ ॥
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